को वो॑ म॒हान्ति॑ मह॒तामुद॑श्नव॒त्कस्काव्या॑ मरुतः॒ को ह॒ पौंस्या॑। यू॒यं ह॒ भूमिं॑ कि॒रणं॒ न रे॑जथ॒ प्र यद्भर॑ध्वे सुवि॒ताय॑ दा॒वने॑ ॥४॥
ko vo mahānti mahatām ud aśnavat kas kāvyā marutaḥ ko ha pauṁsyā | yūyaṁ ha bhūmiṁ kiraṇaṁ na rejatha pra yad bharadhve suvitāya dāvane ||
कः। वः॒। म॒हान्ति॑। म॒ह॒ताम्। उत्। अ॒श्न॒व॒त्। कः। काव्या॑। म॒रु॒तः॒। कः। ह॒। पौंस्या॑। यू॒यम्। ह॒। भूमि॑म्। कि॒रण॑म्। न। रे॒ज॒थ॒। प्र। यत्। भर॑ध्वे। सु॒वि॒ताय॑। दा॒वने॑ ॥४॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
हे मरुतो ! महतां वो महान्ति क उदश्नवत् कः काव्योदश्नवत्को ह पौंस्योदश्नवद्यतो यूयं भूमिं किरणं न रेजथ यद्ध सुविताय दावने प्र भरध्वे तदेव सर्वैः प्राप्तव्यम् ॥४॥
MATA SAVITA JOSHI
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