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गवा॑मिव श्रि॒यसे॒ शृङ्ग॑मुत्त॒मं सूर्यो॒ न चक्षू॒ रज॑सो वि॒सर्ज॑ने। अत्या॑इव सु॒भ्व१॒॑श्चार॑वः स्थन॒ मर्या॑इव श्रि॒यसे॑ चेतथा नरः ॥३॥

English Transliteration

gavām iva śriyase śṛṅgam uttamaṁ sūryo na cakṣū rajaso visarjane | atyā iva subhvaś cāravaḥ sthana maryā iva śriyase cetathā naraḥ ||

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Pad Path

गवा॑म्ऽइव। श्रि॒यसे॑। शृङ्ग॑म्। उ॒त्ऽत॒मम्। सूर्यः॑। न। चक्षुः॑। रज॑सः। वि॒ऽसर्ज॑ने। अत्याः॑ऽइव। सु॒ऽभ्वः॑। चार॑वः। स्थ॒न॒। मर्याः॑ऽइव। श्रि॒यसे॑। चे॒त॒थ॒। न॒रः॒ ॥३॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:59» Mantra:3 | Ashtak:4» Adhyay:3» Varga:24» Mantra:3 | Mandal:5» Anuvak:5» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (सुभ्वः) उत्तम प्रकार होनेवाले (चारवः) सुन्दर स्वभावयुक्त वा जानेवाले (नरः) नायक मनुष्यो ! (शृङ्गम्) ऊपर के (उत्तमम्) उत्तम भाग को (सूर्य्यः) सूर्य्य के (न) सदृश (गवामिव) किरणों के सदृश (श्रियसे) सेवने को (रजसः) लोक के (विसर्जने) त्याग में (चक्षुः) प्रकाश करनेवाले के सदृश आप लोग (स्थन) हूजिये और (अत्याइव) घोड़े के सदृश (मर्य्याइव) वा विद्वानों के सदृश (श्रियसे) आश्रयण करने को आप लोग (चेतथा) उत्तम प्रकार जानिये वा जनाइये ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो मनुष्य किरणों, सूर्य्य, घोड़े और मनुष्यों के सदृश प्रकाश, दान, वेग और विवेक को सेवते हैं, वे ही उत्तम सुख को प्राप्त होते हैं ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे सुभ्वश्चारवो नरः ! शृङ्गमुत्तमं सूर्य्यो न गवामिव श्रियसे रजसो विसर्जने चक्षुरिव यूयं स्थनात्याइव मर्य्याइव श्रियसे यूयं चेतथा ॥३॥

Word-Meaning: - (गवामिव) किरणानामिव (श्रियसे) सेवितुम् (शृङ्गम्) उपरिभागम् (उत्तमम्) (सूर्यः) सविता (न) इव (चक्षुः) प्रकाशकः (रजसः) लोकस्य (विसर्जने) त्यागे (अत्याइव) अश्ववत् (सुभ्वः) ये सुष्ठु भवन्ति (चारवः) सुन्दरस्वभावा गन्तारो वा (स्थन) भवत (मर्य्याइव) यथा विद्वांसो मनुष्याः (श्रियसे) श्रयितुमाश्रयितुम् (चेतथा) सञ्जानीध्वं ज्ञापयत वा। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (नरः) नेतारो मनुष्याः ॥३॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । ये किरणवत्सूर्य्यवदश्ववन्मनुष्यवत्प्रकाशं दानं वेगं विवेकं च सेवन्ते त एवोत्तमं सुखं लभन्ते ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी माणसे किरण, सूर्य, घोडे व माणसांप्रमाणे प्रकाश, दान, वेग व विवेक यांना स्वीकारतात. तीच उत्तम सुख प्राप्त करतात. ॥ ३ ॥