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यत्प्राया॑सिष्ट॒ पृष॑तीभि॒रश्वै॑र्वीळुप॒विभि॑र्मरुतो॒ रथे॑भिः। क्षोद॑न्त॒ आपो॑ रिण॒ते वना॒न्यवो॒स्रियो॑ वृष॒भः क्र॑न्दतु॒ द्यौः ॥६॥

English Transliteration

yat prāyāsiṣṭa pṛṣatībhir aśvair vīḻupavibhir maruto rathebhiḥ | kṣodanta āpo riṇate vanāny avosriyo vṛṣabhaḥ krandatu dyauḥ ||

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Pad Path

यत्। प्र। अया॑सिष्ट। पृष॑तीभिः। अश्वैः॑। वी॒ळु॒प॒विऽभिः॑। म॒रु॒तः॒। रथे॑भिः। क्षोद॑न्ते। आपः॑। रि॒ण॒ते। वना॑नि। अव॑। उ॒स्रियः॑। वृ॒ष॒भः। क्र॒न्द॒तु॒। द्यौः ॥६॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:58» Mantra:6 | Ashtak:4» Adhyay:3» Varga:23» Mantra:6 | Mandal:5» Anuvak:5» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (मरुतः) विद्वान् मनुष्यो ! आप लोग (पृषतीभिः) वेग आदिकों और (अश्वैः) शीघ्र चलनेवाले (रथेभिः) विमान आदि वाहनों से (यत्) जो (वीळुपविभिः) दृढ़ चक्रों से (क्षोदन्ते) वृष्टि करते हैं और जैसे (आपः) जल (वनानि) किरणों को (रिणते) प्राप्त होते हैं, वैसे ही (उस्रियः) किरणों में उत्पन्न (वृषभः) वर्षानेवाला मेघ (द्यौः) कामना करता हुआ किरणों का (अव, क्रन्दतु) आह्वान करे और इष्ट को (प्र, अयासिष्ट) अत्यन्त प्राप्त हों ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! जो आप लोग वायु के सदृश शीघ्र गमन और जल के सदृश तृप्ति करने रूप कार्य को करें तो सम्पूर्ण सुखों को प्राप्त हों ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मरुतो ! भवन्तः पृषतीभिरश्वै रथेभिर्यद्वीळुपविभिः क्षोदन्ते यथाऽऽपो वनानि रिणते तथैवोस्रियो वृषभो द्यौर्वनान्यव क्रन्दतु इष्टं प्रायासिष्ट ॥६॥

Word-Meaning: - (यत्) (प्र) (अयासिष्ट) यातु (पृषतीभिः) वेगादिभिः (अश्वैः) आशुगामिभिः (वीळुपविभिः) दृढचक्रैः (मरुतः) विद्वांसो मनुष्याः (रथेभिः) विमानादियानैः (क्षोदन्ते) क्षरन्ति वर्षन्ति (आपः) जलानि (रिणते) गच्छन्ति (वनानि) किरणान् (अव) (उस्रियः) उस्रासु किरणेषु भवः (वृषभः) वर्षको मेघः (क्रन्दतु) आह्वयतु (द्यौः) कामयमानः ॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! यदि यूयं वायुवत्सद्योगमनं जलवत्तृप्तिकरणं कुर्य्यात तर्हि सर्वणि सुखानि प्राप्नुयात ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! तुम्ही वायुप्रमाणे तात्काळ गमन व जलाप्रमाणे तृप्ती करण्याचे कार्य केले तर संपूर्ण सुख प्राप्त होईल. ॥ ६ ॥