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नि॒युत्व॑न्तो ग्राम॒जितो॒ यथा॒ नरो॑ऽर्य॒मणो॒ न म॒रुतः॑ कव॒न्धिनः॑। पिन्व॒न्त्युत्सं॒ यदि॒नासो॒ अस्व॑र॒न्व्यु॑न्दन्ति पृथि॒वीं मध्वो॒ अन्ध॑सा ॥८॥

English Transliteration

niyutvanto grāmajito yathā naro ryamaṇo na marutaḥ kabandhinaḥ | pinvanty utsaṁ yad ināso asvaran vy undanti pṛthivīm madhvo andhasā ||

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Pad Path

नि॒युत्व॑न्तः। ग्रा॒म॒ऽजितः॑। यथा॑। नरः॑। अ॒र्य॒मणः॑। न। म॒रुतः॑। क॒ब॒न्धिनः॑। पिन्व॑न्ति। उत्स॑म्। यत्। इ॒नासः॑। अस्व॑रन्। वि। उ॒न्द॒न्ति॒। पृ॒थि॒वीम्। मध्वः॑। अन्ध॑सा ॥८॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:54» Mantra:8 | Ashtak:4» Adhyay:3» Varga:15» Mantra:3 | Mandal:5» Anuvak:4» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य कैसे हों, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यथा) जैसे (नियुत्वन्तः) निश्चयवान् (ग्रामजितः) ग्राम को जीतनेवाले (अर्यमणः) न्यायाधीशों के (न) सदृश (कबन्धिनः) बहुत जलों से युक्त (इनासः) समर्थ (नरः) नायक (मरुतः) मनुष्य (यत्) जिसको (उत्सम्) कूप के समान (पिन्वन्ति) तृप्त करते वा (अस्वरन्) शब्द करते हैं और (अन्धसा) अन्न के साथ (मध्वः) मधुर गुणयुक्त होते हुए (पृथिवीम्) पृथिवी को (वि, उन्दन्ति) विशेष गीला करते हैं, वे भाग्यशाली होते हैं ॥८॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो जल के सदृश शान्ति करनेवाले और सामर्थ्य को बढ़ाते हुए विजय को प्राप्त होते हैं, वे लक्ष्मी को प्राप्त होते हैं ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथा नियुत्वन्तो ग्रामजितोऽर्यमणो न कबन्धिन इनासो नरो मरुतो यदुत्समिव पिन्वन्त्यस्वरन्नन्धसा सह मध्वस्सन्तः पृथिवीं व्युन्दन्ति ते भाग्यशालिनो भवन्ति ॥८॥

Word-Meaning: - (नियुत्वन्तः) निश्चयवन्तः (ग्रामजितः) ये ग्रामं जयन्ति ते (यथा) (नरः) नायकाः (अर्यमणः) न्यायेशाः (नः) (मरुतः) (कबन्धिनः) बहूदकाः (पिन्वन्ति) प्रीणन्ति (उत्सम्) कूपमिव (यत्) (इनासः) ईश्वराः समर्थाः (अस्वरन्) स्वरन्ति शब्दयन्ति (वि) (उन्दन्ति) क्लेदयन्ति (पृथिवीम्) (मध्वः) मधुरगुणयुक्ताः (अन्धसा) अन्नेन सह ॥८॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । ये जलवच्छान्तिकराः सामर्थ्यं वर्धयमाना विजयन्ते ते श्रियं लभन्ते ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे जलाप्रमाणे शांत असून सामर्थ्य वाढवून विजय मिळवितात ते श्रीमंत होतात. ॥ ८ ॥