Go To Mantra

प्र शर्धा॑य॒ मारु॑ताय॒ स्वभा॑नव इ॒मां वाच॑मनजा पर्वत॒च्युते॑। घ॒र्म॒स्तुभे॑ दि॒व आ पृ॑ष्ठ॒यज्व॑ने द्यु॒म्नश्र॑वसे॒ महि॑ नृ॒म्णम॑र्चत ॥१॥

English Transliteration

pra śardhāya mārutāya svabhānava imāṁ vācam anajā parvatacyute | gharmastubhe diva ā pṛṣṭhayajvane dyumnaśravase mahi nṛmṇam arcata ||

Mantra Audio
Pad Path

प्र। शर्धा॑य। मारु॑ताय। स्वऽभा॑नवे। इ॒माम्। वाच॑म्। अ॒न॒ज॒। प॒र्व॒त॒ऽच्युते॑। घ॒र्म॒ऽस्तुभे॑ दि॒वः। आ। पृ॒ष्ठ॒ऽयज्व॑ने। द्यु॒म्नऽश्र॑वसे। महि॑। नृ॒म्णम्। अ॒र्च॒त॒ ॥१॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:54» Mantra:1 | Ashtak:4» Adhyay:3» Varga:14» Mantra:1 | Mandal:5» Anuvak:4» Mantra:1


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब पन्द्रह ऋचावाले चौवनवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में विद्वानों को कैसे वर्त्तना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (दिवः) कामना करते हुए विद्वानो ! आप लोग (स्वभानवे) अपनी कान्ति विद्यमान जिसके उस (मारुताय) मनुष्यों के सम्बन्धी (शर्धाय) बल के लिये (इमाम्) इस वर्त्तमान (वाचम्) उत्तम प्रकार शिक्षित वाणी का (प्रानज) उच्चारण कीजिये अर्थात् उपदेश दीजिये और (पर्वतच्युते) मेघ से गिरे वा जो मेघ को वर्षाता (घर्मस्तुभे) यज्ञ की स्तुति करता और (पृष्ठयज्वने) पृष्ठ से यज्ञ करता (द्युम्नश्रवसे) वा यश सुना गया जिसका उसके लिये (महि) बड़े (नृम्णम्) मनुष्य अभ्यास करते हैं जिसका, उसका (आ, अर्चत) सत्कार करो ॥१॥
Connotation: - हे विद्वानो ! आप लोग सदा ही ज्ञानरहित पुरुषों को विद्या के दान से ज्ञानवान् करो, सत्य और असत्य का विचार करके सत्य का ग्रहण कराय के असत्य का त्याग कराइये और सब के सुख के लिये ऐश्वर्य्य को इकट्ठा करो ॥१॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथं विद्वद्भिः कथं वर्त्तितव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे दिवो विद्वांसो ! यूयं स्वभानवे मारुताय शर्धायेमां वाचं प्रानज पर्वतच्युते घर्मस्तुभे पृष्ठयज्वने द्युम्नश्रवसे महि नृम्णमार्चत ॥१॥

Word-Meaning: - (प्र) (शर्धाय) बलाय (मारुताय) मरुतामिदं तस्मै (स्वभानवे) स्वकीया भानवो दीप्तयो यस्य तस्मै (इमाम्) वर्त्तमानाम् (वाचम्) सुशिक्षितां वाणीम् (अनज) उच्चरतोपदिशत। अत्र संहितायामिति दीर्घः, व्यत्ययेनैकवचनं च। (पर्वतच्युते) पर्वतान्मेघाच्च्युतो यः पर्वतं मेघं च्यावयति वा तस्मै (घर्मस्तुभे) यो घर्मं यज्ञं स्तोभति स्तौति तस्मै (दिवः) कामयमानाः (आ) समन्तात् (पृष्ठयज्वने) यः पृष्ठेन यजति तस्मै (द्युम्नश्रवसे) द्युम्नं यशः श्रवः श्रुतं यस्य तस्मै (महि) महत् (नृम्णम्) नरोऽभ्यस्यन्ति यत्तत् (अर्चत) सत्कुरुत ॥१॥
Connotation: - हे विद्वांसो ! यूयं सदैवाज्ञान् विद्यादानेन ज्ञानवतः कुरुत सत्यासत्यं विविच्य सत्यं ग्राहयित्वाऽसत्यं त्याजयत सर्वसुखायैश्वर्य्यं सञ्चिनुत ॥१॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात विद्युत व सुखाचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे विद्वानांनो! तुम्ही सदैव अज्ञानी लोकांना विद्या दान करा व ज्ञानदान करा. सत्य-असत्याचा विचार करून सत्याचा स्वीकार करवा व असत्याचा त्याग करावा आणि सर्वांच्या सुखासाठी ऐश्वर्य संपादित करा. ॥ १ ॥