उ॒त स्म॒ ते परु॑ष्ण्या॒मूर्णा॑ वसत शु॒न्ध्यवः॑। उ॒त प॒व्या रथा॑ना॒मद्रिं॑ भिन्द॒न्त्योज॑सा ॥९॥
uta sma te paruṣṇyām ūrṇā vasata śundhyavaḥ | uta pavyā rathānām adrim bhindanty ojasā ||
उ॒त। स्म॒। ते। परु॑ष्ण्या॒म्। ऊर्णाः॑। व॒स॒त॒। शु॒न्ध्यवः॑। उ॒त। प॒व्या। रथा॑नाम्। अद्रि॑म्। भि॒न्द॒न्ति॒। ओज॑सा ॥९॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
हे मनुष्या ! याः परुष्ण्यां शुन्ध्यवो रथानां पव्या इवौजसाऽद्रिं भिन्दन्ति उत वर्षन्ति तास्ते स्युः। उत स्मोर्णाः सन्तोऽत्र सत्कृता यूयं वसत ॥९॥
MATA SAVITA JOSHI
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