स॒प्त मे॑ स॒प्त शा॒किन॒ एक॑मेका श॒ता द॑दुः। य॒मुना॑या॒मधि॑ श्रु॒तमुद्राधो॒ गव्यं॑ मृजे॒ नि राधो॒ अश्व्यं॑ मृजे ॥१७॥
sapta me sapta śākina ekam-ekā śatā daduḥ | yamunāyām adhi śrutam ud rādho gavyam mṛje ni rādho aśvyam mṛje ||
स॒प्त। मे॒। स॒प्त। शा॒किनः॑। एक॑म्ऽएका। श॒ता। द॒दुः॒। य॒मुना॑याम्। अधि॑। श्रु॒त॒म्। उत्। राधः॑। गव्य॑म्। मृ॒जे॒। नि। राधः॑। अश्व्य॑म्। मृ॒जे॒ ॥१७॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
हे मनुष्या ! यद्राधो यमुनायां मयाधि श्रुतं यद्गव्यमुन्मृजे यदश्व्यं राधो नि मृजे तन्मे सप्त शाकिनः सप्तैकमेका शता ये ददुः तत्ताँश्च यूयं प्राप्नुत विजानीत ॥१७॥
MATA SAVITA JOSHI
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