छ॒न्दः॒स्तुभः॑ कुभ॒न्यव॒ उत्स॒मा की॒रिणो॑ नृतुः। ते मे॒ के चि॒न्न ता॒यव॒ ऊमा॑ आसन्दृ॒शि त्वि॒षे ॥१२॥
chandaḥstubhaḥ kubhanyava utsam ā kīriṇo nṛtuḥ | te me ke cin na tāyava ūmā āsan dṛśi tviṣe ||
छ॒न्दः॒स्तुभः॑। कु॒भ॒न्यवः॑। उत्स॑म्। आ। की॒रिणः॑। नृ॒तुः॒ ते। मे॒। के। चि॒त्। न। ता॒यवः॑। ऊमाः॑। आ॒स॒न्। दृ॒शि॒। त्वि॒षे ॥१२॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर मनुष्य कैसे वर्त्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनर्मनुष्याः कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥
ये के चिच्छन्दःस्तुभ उत्समिव कुभन्यव ऊमा दृशि मे त्विष आसँस्ते नृतुरिवाऽऽकीरिणस्तायवो न स्युः ॥१२॥
MATA SAVITA JOSHI
N/A