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स्व॒स्तये॑ वा॒युमुप॑ ब्रवामहै॒ सोमं॑ स्व॒स्ति भुव॑नस्य॒ यस्पतिः॑। बृह॒स्पतिं॒ सर्व॑गणं स्व॒स्तये॑ स्व॒स्तय॑ आदि॒त्यासो॑ भवन्तु नः ॥१२॥

English Transliteration

svastaye vāyum upa bravāmahai somaṁ svasti bhuvanasya yas patiḥ | bṛhaspatiṁ sarvagaṇaṁ svastaye svastaya ādityāso bhavantu naḥ ||

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Pad Path

स्व॒स्तये॑। वा॒युम्। उप॑। ब्र॒वा॒म॒है॒। सोम॑म्। स्व॒स्ति। भुव॑नस्य। यः। पतिः॑। बृह॒स्पति॑म्। सर्व॑ऽगणम्। स्व॒स्तये॑। स्व॒स्तये॑। आ॒दि॒त्यासः॑। भ॒व॒न्तु॒। नः॒ ॥१२॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:51» Mantra:12 | Ashtak:4» Adhyay:3» Varga:7» Mantra:2 | Mandal:5» Anuvak:4» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य कैसे विद्यावृद्धि करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग (स्वस्तये) सुख के लिये (वायुम्) वायुविद्या और (सोमम्) ऐश्वर्य्य का (उप, ब्रवामहै) उपदेश देवें, वैसे सुनकर आप लोग अन्यों के प्रति उपदेश दीजिये और (यः) जो (भुवनस्य) लोक का (पतिः) स्वामी है वह (स्वस्तये) उपद्रव दूर होने के लिये (सर्वगणम्) सम्पूर्ण समूह जिसमें उस (बृहस्पतिम्) बड़ी वेदवाणियों के स्वामी को और (नः) हम लोगों के लिये (स्वस्ति) सुख को धारण करे और जैसे (आदित्यासः) अड़तालीस वर्ष परिमित ब्रह्मचर्य्य से किया विद्याभ्यास जिन्होंने तथा जो मास के सदृश सम्पूर्ण विद्याओं में व्याप्त वे हम लोगों के अर्थ (स्वस्तये) अत्यन्त सुख के लिये (भवन्तु) होवें, वैसे आप लोगों के लिये भी हों ॥१२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । मनुष्य परस्पर पदार्थविद्या को सुन और अभ्यास करके विद्वान् होवें ॥१२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः कथं विद्यावृद्धिं कुर्युरित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथा वयं स्वस्तये वायुं सोममुप ब्रवामहै तथा श्रुत्वा यूयमन्यान् प्रत्युप ब्रुवत। यो भुवनस्य पतिः सः स्वस्तये सर्वगणं बृहस्पतिं नः स्वस्ति च दधातु यथाऽऽदित्यासो नः स्वस्तये भवन्तु तथा युष्मभ्यमपि सन्तु ॥१२॥

Word-Meaning: - (स्वस्तये) सुखाय (वायुम्) वायुविद्याम् (उप) (ब्रवामहै) उपदिशेम (सोमम्) ऐश्वर्य्यम् (स्वस्ति) (भुवनस्य) लोकस्य (यः) (पतिः) पालकः (बृहस्पतिम्) बृहतीनां स्वामिनम् (सर्वगणम्) सर्वे गणाः समूहा यस्मिन् (स्वस्तये) निरुपद्रवाय (स्वस्तये) परमसुखाय (आदित्यासः) अष्टचत्वारिंशद्वर्षपरिमितेन ब्रह्मचर्येण कृतविद्या मासा इव व्याप्ताखिलविद्या वा (भवन्तु) (नः) अस्मभ्यम् ॥१२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । मनुष्याः परस्परं पदार्थविद्यां श्रुत्वाऽभ्यस्य च विद्वांसो भवन्तु ॥१२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी परस्पर पदार्थविद्या ऐकून व अभ्यास करून विद्वान बनावे. ॥ १२ ॥