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विश्वो॑ दे॒वस्य॑ ने॒तुर्मर्तो॑ वुरीत स॒ख्यम्। विश्वो॑ रा॒य इ॑षुध्यति द्यु॒म्नं वृ॑णीत पु॒ष्यसे॑ ॥१॥

English Transliteration

viśvo devasya netur marto vurīta sakhyam | viśvo rāya iṣudhyati dyumnaṁ vṛṇīta puṣyase ||

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Pad Path

विश्वः॑। दे॒वस्य॑। ने॒तुः। मर्तः॑। वु॒री॒त॒। स॒ख्यम्। विश्वः॑। रा॒ये। इ॒षु॒ध्य॒ति। द्यु॒म्नम्। वृ॒णी॒त॒। पु॒ष्यसे॑ ॥१॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:50» Mantra:1 | Ashtak:4» Adhyay:3» Varga:4» Mantra:1 | Mandal:5» Anuvak:4» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब पाँच ऋचावाले पचासवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में मनुष्यों को चाहिये कि विद्वानों के साथ मित्रता से विद्या और धन को प्राप्त होकर यज्ञ बढ़ावें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - (विश्वः) सम्पूर्ण (मर्त्तः) मनुष्य (नेतुः) अग्रणी (देवस्य) विद्वान् की (सख्यम्) मित्रता को (वुरीत) स्वीकार करें और (विश्वः) सम्पूर्ण (राये) धन के लिये (इषुध्यति) वाणों को धारण करता है और जिससे आप (पुष्यसे) पुष्ट होते हैं, उस (द्युम्नम्) यश को आप (वृणीत) स्वीकार करिये ॥१॥
Connotation: - सब मनुष्यों को चाहिये कि विद्या धन और शरीरपुष्टि की प्राप्ति के लिये विद्वानों की शिक्षा, शरीर और आत्मा से परिश्रम निरन्तर करें ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यैर्विद्वन्मित्रत्वेन विद्याधने प्राप्य यशः प्रथितव्यमित्याह ॥

Anvay:

विश्वो मर्त्तो नेतुर्देवस्य सख्यं वुरीत विश्वो राय इषुध्यति येन त्वं पुष्यसे तत् द्युम्नं भवान् वृणीत ॥१॥

Word-Meaning: - (विश्वः) सर्वः (देवस्य) विदुषः (नेतुः) नायकस्य (मर्त्तः) मनुष्यः (वुरीत) स्वीकुर्य्यात् (सख्यम्) मित्रत्वम् (विश्वः) समग्रः (राये) धनाय (इषुध्यति) इषून् धरति (द्युम्नम्) यशः (वृणीत) (पुष्यसे) पुष्टो भवसि ॥१॥
Connotation: - सर्वैमनुष्यैर्विद्याधनशरीरपुष्टिप्राप्तये विद्वच्छिक्षा शरीरात्मपरिश्रमश्च सततं कर्त्तव्यः ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या पूर्वीच्या सूक्तार्थाबरोबर या सूक्ताच्या अर्थाची संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - सर्व माणसांनी विद्या धन व शरीरपुष्टीसाठी विद्वानांकडून शिक्षण घ्यावे. शरीर व आत्म्याद्वारे निरंतर परिश्रम करावा. ॥ १ ॥