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तद॑स्तु मित्रावरुणा॒ तद॑ग्ने॒ शं योर॒स्मभ्य॑मि॒दम॑स्तु श॒स्तम्। अ॒शी॒महि॑ गा॒धमु॒त प्र॑ति॒ष्ठां नमो॑ दि॒वे बृ॑ह॒ते साद॑नाय ॥७॥

English Transliteration

tad astu mitrāvaruṇā tad agne śaṁ yor asmabhyam idam astu śastam | aśīmahi gādham uta pratiṣṭhāṁ namo dive bṛhate sādanāya ||

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Pad Path

तत्। अ॒स्तु॒। मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒। तत्। अ॒ग्ने॒। शम्। योः। अ॒स्मभ्य॑म्। इ॒दम्। अ॒स्तु॒। श॒स्तम्। अ॒शी॒महि॑। गा॒धम्। उ॒त। प्र॒ति॒ऽस्थाम्। नमः॑। दि॒वे। बृ॒ह॒ते। साद॑नाय ॥७॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:47» Mantra:7 | Ashtak:4» Adhyay:3» Varga:1» Mantra:7 | Mandal:5» Anuvak:4» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (मित्रावरुणा) प्राण और उदान वायु के सदृश वर्त्तमान माता-पिता तथा अध्यापक और उपदेशक जन ! आप दोनों के सङ्ग से (तत्) उस (शम्) सुख को हम लोग (अशीमहि) प्राप्त होवें और (अग्ने) हे अग्ने ! (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (तत्) वह (अस्तु) हो। (योः) दुःख से पृथग्भूत (इदम्) यह (शस्तम्) प्रशंसा करने योग्य (अस्तु) हो और (गाधम्) गम्भीर (उत) भी (प्रतिष्ठाम्) आदर को प्राप्त हो कर (बृहते) बड़े (सादनाय) स्थितिमान् के लिये और (दिवे) कामना करते हुए के लिये (नमः) सत्कार हो ॥७॥
Connotation: - जो मनुष्य यथार्थवक्ता विद्वानों और अध्यापकों का सत्कार करते हैं, वे ही सुख को प्राप्त होते हैं ॥७॥ इस सूक्त में स्त्री पुरुषादि के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह सैंतालीसवाँ सूक्त और पहिला वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मित्रावरुणा अध्यापकोपदेशकौ ! युवयोः सङ्गेन तच्छं वयमशीमहि। हे अग्नेऽस्मभ्यं तदस्तु योरिदं शस्तमस्तु गाधमुत प्रतिष्ठां प्राप्य बृहते सादनाय दिवे नमोऽस्तु ॥७॥

Word-Meaning: - (तत्) (अस्तु) (मित्रावरुणा) प्राणोदानाविव मातापितरौ (तत्) (अग्ने) पावक (शम्) सुखम् (योः) दुःखात्पृथग्भूतम् (अस्मभ्यम्) (इदम्) (अस्तु) (शस्तम्) प्रशंसनीयम् (अशीमहि) प्राप्नुयाम (गाधम्) गभीरम् (उत) (प्रतिष्ठाम्) (नमः) सत्कारम् (दिवे) कामयमानाय (बृहते) महते (सादनाय) स्थितिमते ॥७॥
Connotation: - ये मनुष्या आप्तान् विदुषोऽध्यापकान् सत्कुर्वन्ति त एव सुखं लभन्ते ॥७॥ अत्र स्त्रीपुरुषादिगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति सप्तचत्वारिंशत्तमं सूक्तं प्रथमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी माणसे आप्त विद्वान व अध्यापक यांचा सत्कार करतात त्यांना सुख मिळते. ॥ ७ ॥