उ॒त नो॒ विष्णु॑रु॒त वातो॑ अ॒स्रिधो॑ द्रविणो॒दा उ॒त सोमो॒ मय॑स्करत्। उ॒त ऋ॒भव॑ उ॒त रा॒ये नो॑ अ॒श्विनो॒त त्वष्टो॒त विभ्वानु॑ मंसते ॥४॥
uta no viṣṇur uta vāto asridho draviṇodā uta somo mayas karat | uta ṛbhava uta rāye no aśvinota tvaṣṭota vibhvānu maṁsate ||
उ॒त। नः॒। विष्णुः॑। उ॒त। वातः॑। अ॒स्रिधः॑। द्र॒वि॒णः॒ऽदाः। उ॒त। सोमः॑। मयः॑। क॒र॒त्। उ॒त। ऋ॒भवः॑। उ॒त। रा॒ये। नः॒। अ॒श्विना॑। उ॒त। त्वष्टा॑। उ॒त। विऽभ्वा॑। अनु॑। मं॒स॒ते॒ ॥४॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अवश्य मनुष्यों को ईश्वरादिकों का सेवन करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अवश्यं मनुष्यैरीश्वरादिसेवनं कार्यमित्याह ॥
हे मनुष्या ! नो विष्णुरुत वात उतास्रिधो द्रविणोदा उत सोम उतर्भव उत राये नोऽस्मानुताश्विनोत त्वष्टा विभ्वाऽनु मंसते तैर्विद्वान् मयस्करत् ॥४॥
MATA SAVITA JOSHI
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