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अनू॑नो॒दत्र॒ हस्त॑यतो॒ अद्रि॒रार्च॒न्येन॒ दश॑ मा॒सो नव॑ग्वाः। ऋ॒तं य॒ती स॒रमा॒ गा अ॑विन्द॒द्विश्वा॑नि स॒त्याङ्गि॑राश्चकार ॥७॥

English Transliteration

anūnod atra hastayato adrir ārcan yena daśa māso navagvāḥ | ṛtaṁ yatī saramā gā avindad viśvāni satyāṅgirāś cakāra ||

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Pad Path

अनू॑नोत्। अत्र॑। हस्त॑ऽयतः। अद्रिः॑। आर्च॑न्। येन॑। दश॑। मा॒सः। नव॑ऽग्वाः। ऋ॒तम्। य॒ती। स॒रमा॑। गाः। अ॒वि॒न्द॒त्। विश्वा॑नि। स॒त्या। अङ्गि॑राः। च॒का॒र॒ ॥७॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:45» Mantra:7 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:27» Mantra:2 | Mandal:5» Anuvak:4» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - (येन) जिससे (अत्र) इस संसार में (नवग्वाः) नवीन गमनवाले (दश) दश (मासः) चैत्र आदि महीने वर्तमान हैं और (हस्तयतः) हाथ निग्रह किये अर्थात् वशीभूत किये जिसके वह (अद्रिः) मेघ के सदृश (आर्चन्) सत्कार करता हुआ (अनूनोत्) प्रेरणा करे और जो (सरमा) तुल्य रमनेवाली (ऋतम्) सत्य का (यती) यत्न करती हुई (गाः) इन्द्रियों को (अविन्दत्) प्राप्त होती है और जो (अङ्गिराः) अङ्गों का रसरूप प्राण के सदृश (विश्वानि) सम्पूर्ण (सत्या) सत्य कार्य्यों को (चकार) करता है, वे सत्कार करने योग्य हैं ॥७॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो मनुष्य सर्वदा सत्य आचरण से युक्त होकर सब के उपकार को सिद्ध करते हैं, वे इस संसार में धर्मात्मा गिने जाते हैं ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

येनात्र नवग्वा दश मासो वर्त्तन्ते हस्तयतोऽद्रिर्राचन्ननूनोद्या सरमा ऋतं यती गा अविन्दत्। यश्चाङ्गिरा विश्वानि सत्या चकार ते सत्कर्त्तुमर्हाः सन्ति ॥७॥

Word-Meaning: - (अनूनोत्) प्रेरयेत् (अत्र) (हस्तयतः) हस्ता यता निगृहीता वशीभूता यस्य सः (अद्रिः) मेघ इव (आर्चन्) सत्कुर्वन् (येन) (दश) (मासः) चैत्राद्याः (नवग्वाः) नवीनगतयः (ऋतम्) सत्यम् (यती) यतमाना (सरमा) समानरमणा (गाः) इन्द्रियाणि (अविन्दत्) प्राप्नोति (विश्वानि) सर्वाणि (सत्या) सत्यानि (अङ्गिराः) अङ्गानां रसरूपः प्राण इव (चकार) करोति ॥७॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । ये मनुष्याः सर्वदा सत्याचारा भूत्वा सर्वोपकारं साध्नुवन्ति तेऽत्र धर्मात्मानो गण्यन्ते ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे सत्याचा आश्रय घेऊन सर्वांवर उपकार करतात ती या जगात धर्मात्मा मानली जातात. ॥ ७ ॥