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अत्यं॑ ह॒विः स॑चते॒ सच्च॒ धातु॒ चारि॑ष्टगातुः॒ स होता॑ सहो॒भरिः॑। प्र॒सर्स्रा॑णो॒ अनु॑ ब॒र्हिर्वृषा॒ शिशु॒र्मध्ये॒ युवा॒जरो॑ वि॒स्रुहा॑ हि॒तः ॥३॥

English Transliteration

atyaṁ haviḥ sacate sac ca dhātu cāriṣṭagātuḥ sa hotā sahobhariḥ | prasarsrāṇo anu barhir vṛṣā śiśur madhye yuvājaro visruhā hitaḥ ||

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Pad Path

अत्य॑म्। ह॒विः। स॒च॒ते॒। सत्। च॒। धातु॑। च॒। अरि॑ष्टऽगातुः। सः। होता॑। स॒हः॒ऽभरिः॑। प्र॒ऽसर्स्रा॑णः। अनु॑। ब॒र्हिः। वृषा॑। शिशुः॑। मध्ये॑। युवा॑। अ॒जरः॑। वि॒ऽस्रुहा॑। हि॒तः ॥३॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:44» Mantra:3 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:23» Mantra:3 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब मेघविषय से राजगुणों को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (अरिष्टगातुः) ऐसा है कि जिसकी नहीं हिंसित वाणी वह (सहोभरिः) बल को धारण करनेवाला (होता) दाताजन (प्रसर्स्राणः) प्रकर्षता से अत्यन्त चलता हुआ (वृषा) बलिष्ठ (युवा) यौवन अवस्था को प्राप्त (अजरः) वृद्ध अवस्था से रहित (विस्रुहा) रोगों का नाश करनेवाला (हितः) हितकारी (बर्हिः) अन्तरिक्ष को (अनु) पश्चात् (सत्) वर्त्तमान को (च) और (धातु) धारण करनेवाले (च) और (अत्यम्) व्याप्त होनेवाले में उत्पन्न (हविः) हवन करने योग्य द्रव्य को (सचते) सम्बन्धित करता है (सः) वह (शिशुः) बालक माता को जैसे वैसे संसार के (मध्ये) बीच में पुण्य से युक्त होता है ॥३॥
Connotation: - हे राजन् ! जैसे हवन करनेवाला सुगन्धि आदि से युक्त, अग्नि में हवन किये हुए द्रव्य से वायु, वृष्टि और जल की शुद्धि के द्वारा संसार में सुख का उपकार करता है, वैसे न्याय और कीर्ति की वासना से युक्त दी हुई विद्या से राज्य देश को सुखी करिये ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ मेघविषयेण राजगुणानाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! योऽरिष्टगातुः सहोभरिर्होता प्रसर्स्राणो वृषा युवाजरो विस्रुहा हितो बर्हिरनु सच्च धातु चात्यं हविः सचते स शिशुर्मातरमिव जगतो मध्ये पुण्येन युज्यते ॥३॥

Word-Meaning: - (अत्यम्) अतति व्याप्नोति तत्र भवम् (हविः) होतव्यं द्रव्यम् (सचते) सम्बध्नाति (सत्) यद्वर्त्तते तत् (च) (धातु) यद्दधाति तत् (च) (अरिष्टगातुः) अरिष्टा अहिंसिता गातुर्वाग्यस्य सः (सः) (होता) दाता (सहोभरिः) यः सहो बलं बिभर्ति (प्रसर्स्राणः) प्रकर्षेण भृशं गच्छन् (अनु) (बर्हिः) अन्तरिक्षम् (वृषा) बलिष्ठः (शिशुः) बालकः (मध्ये) (युवा) प्राप्तयौवनावस्थः (अजरः) वृद्धावस्थारहितः (विस्रुहा) यो विस्रून् रोगान् हन्ति (हितः) हितकारी ॥३॥
Connotation: - हे राजन् ! यथा होता सुगन्ध्यादियुक्तेनाग्नौ हुतेन द्रव्येण वायुवृष्टिजलशुद्धिद्वारा जगति सुखमुपकरोति तथा न्यायकीर्तिवासनया दत्तया विद्यया च राष्ट्रं सुखी कुरु ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा! जसा याज्ञिक सुगंधीने युक्त अग्नीत हवन केलेल्या द्रव्याने वायू वृष्टी व जलाच्या शुद्धीद्वारे जगात सुख निर्माण करून उपकार करतो. तसे तू विद्येद्वारे न्याय व कीर्तीची इच्छा बाळगून राष्ट्राला सुखी कर. ॥ ३ ॥