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अध्व॑र्यवश्चकृ॒वांसो॒ मधू॑नि॒ प्र वा॒यवे॑ भरत॒ चारु॑ शु॒क्रम्। होते॑व नः प्रथ॒मः पा॑ह्य॒स्य देव॒ मध्वो॑ ररि॒मा ते॒ मदा॑य ॥३॥

English Transliteration

adhvaryavaś cakṛvāṁso madhūni pra vāyave bharata cāru śukram | hoteva naḥ prathamaḥ pāhy asya deva madhvo rarimā te madāya ||

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Pad Path

अध्व॑र्यवः। च॒कृ॒ऽवांसः॑। मधू॑नि। प्र। वा॒यवे॑। भ॒र॒त॒। चारु॑। शु॒क्रम्। होता॑ऽइव। नः॒। प्र॒थ॒मः। पा॒हि॒। अ॒स्य। देव॑। मध्वः॑। र॒रि॒म। ते॒। मदा॑य ॥३॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:43» Mantra:3 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:20» Mantra:3 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (देव) विद्वन् (प्रथमः) पहिले आप (होतेव) दाता जन के सदृश (अस्य) इस (मध्वः) मधुर के मध्य में (नः) हम लोगों की (पाहि) रक्षा करिये, जिससे हम लोग (ते) आपके (मदाय) आनन्द के लिये (ररिमा) क्रीड़ा करें । हे (चक्रिवांसः) कार्य्य करते हुए और (अध्वर्य्यवः) अपनी अहिंसा की इच्छा करते हुए आप लोग (वायवे) वायुविद्या के लिये (मधूनि) विज्ञानों और (चारु) सुन्दर (शुक्रम्) जल को (प्र, भरत) उत्तम प्रकार धारण कीजिये ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे हवन करनेवाला होम से सब के हित को सिद्ध करता है, वैसे ही सब के हित के लिये वायु और जल की विद्या को विस्तारिये, जिससे सब हम लोग आनन्दित हुए वर्त्ताव करें ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे देव ! प्रथमस्त्वं होतेवाऽस्य मध्वो मध्ये नः पाहि यतो वयं ते मदाय ररिमा। हे चक्रिवांसोऽध्वर्यवो ! यूयं वायवे मधूनि चारु शुक्रं च प्र भरत ॥३॥

Word-Meaning: - (अध्वर्य्यवः) आत्मनोऽध्वरमहिंसामिच्छवः (चकृवांसः) कुर्वन्तः (मधूनि) विज्ञानानि (प्र) (वायवे) वायुविद्यायै (भरत) (चारु) सुन्दरम् (शुक्रम्) उदकम्। शुक्रमित्युदकनामसु पठितम्। (निघं०१।१२) (होतेव) यथा दाता (नः) अस्मान् (प्रथमः) (पाहि) (अस्य) (देव) विद्वन् (मध्वः) मधुरस्य (ररिमा) रमेमहि। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (ते) तव (मदाय) आनन्दाय ॥३॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! यथा होता होमेन सर्वहितं साध्नोति तथैव सर्वहिताय वायुजलविद्यां प्रसारयत येन सर्वे वयमानन्दिता वर्त्तेमहि ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा यज्ञ करणारा सर्वांचे हित करतो तसेच सर्वांच्या हितासाठी वायू व जलाच्या विद्येचा विस्तार केला पाहिजे. ज्यामुळे आम्ही सर्व आनंदाने वागू. ॥ ३ ॥