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सम॒श्विनो॒रव॑सा॒ नूत॑नेन मयो॒भुवा॑ सु॒प्रणी॑ती गमेम। आ नो॑ र॒यिं व॑हत॒मोत वी॒राना विश्वा॑न्यमृता॒ सौभ॑गानि ॥१७॥

English Transliteration

sam aśvinor avasā nūtanena mayobhuvā supraṇītī gamema | ā no rayiṁ vahatam ota vīrān ā viśvāny amṛtā saubhagāni ||

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Pad Path

सम्। अ॒श्विनोः॑। अव॑सा। नूत॑नेन। म॒यःऽभुवा॑। सु॒ऽप्रनी॑ती। ग॒मे॒म॒। आ। नः॒। र॒यिम्। व॒॒ह॒त॒म्। आ। उ॒त। वी॒रान्। आ। विश्वा॑नि। अ॒मृ॒ता॒। सौभ॑गानि ॥१७॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:43» Mantra:17 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:22» Mantra:7 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:17


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे अध्यापकोपदेशको ! जो (मयोभुवाः) सुख के उत्पन्न करनेवाले (सुप्रणीती) धर्मसन्बधी नीति से युक्त आप (नः) हम लोगों को (रयिम्) धन (उत) और (वीरान्) अति उत्तम पुत्र-पौत्र आदिकों को (आ, वहतम्) अच्छे प्रकार प्राप्त करावें और जिन (अश्विनोः) अध्यापक और उपदेशकों के (नूतनेन) नवीन (अवसा) रक्षण आदि से हम लोग (विश्वानि) सम्पूर्ण (अमृता) नाश से रहित (सौभगानि) सुन्दर ऐश्वर्य्यों के भावों को हम लोग (सम्, आ गमेम) उत्तम प्रकार प्राप्त होवें, वे दोनों हम लोगों से सदा (आ) उत्तम प्रकार सेवन करने योग्य हैं ॥१७॥
Connotation: - जो अध्यापक और उपदेशक जन सब मनुष्यों को नवीन और प्राचीन विद्या से युक्त कर ऐश्वर्य्य को प्राप्त कराते हैं, वे सदा ही प्रशंसित होते हैं ॥१७॥ इस सूक्त में सम्पूर्ण विद्वानों के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह तेतालीसवाँ सूक्त और बाईसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे अध्यापकोपदेशकौ ! यौ मयोभुवा सुप्रणीती युवां नो रयिमुतापि वीराना वहतं ययोरश्विनोर्नूतनेनावसा वयं विश्वान्यमृता सौभगानि वयं सोमा गमेम तावस्माभिः सदैवा सेवनीयौ स्तः ॥१७॥

Word-Meaning: - (सम्) (अश्विनोः) अध्यापकोपदेशकयोः (अवसा) रक्षणाद्येन (नूतनेन) नवीनेन (मयोभुवा) सुखंभावुकौ (सुप्रणीती) धर्म्यनीतियुक्तौ (गमेम) प्राप्नुयाम (आ) (नः) अस्मान् (रयिम्) धनम् (वहतम्) प्रापयेतम् (आ) (उत) अपि (वीरान्) अत्युत्तमान् पुत्रपौत्रादीन् (आ) (विश्वानि) समग्राणि (अमृता) नाशरहितानि (सौभगानि) शोभनैश्वर्य्याणां भावान् ॥१७॥
Connotation: - येऽध्यापकोपदेशकाः सर्वान् मनुष्यान् नूतनयाऽनूतनया विद्यया युक्तान् कृत्वैश्वर्य्यं प्रापयन्ति ते सदैव प्रशंसिता भवन्तीति ॥१७॥ अत्र विश्वदेवगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति त्रिचत्वारिंशत्तमं सूक्तं द्वाविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे अध्यापक व उपदेशक सर्व माणसांना नवीन व प्राचीन विद्येने युक्त करून ऐश्वर्य प्राप्त करवितात ते सदैव प्रशंसित होतात. ॥ १७ ॥