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आ ध॑र्ण॒सिर्बृ॒हद्दि॑वो॒ ररा॑णो॒ विश्वे॑भिर्ग॒न्त्वोम॑भिर्हुवा॒नः। ग्ना वसा॑न॒ ओष॑धी॒रमृ॑ध्रस्त्रि॒धातु॑शृङ्गो वृष॒भो व॑यो॒धाः ॥१३॥

English Transliteration

ā dharṇasir bṛhaddivo rarāṇo viśvebhir gantv omabhir huvānaḥ | gnā vasāna oṣadhīr amṛdhras tridhātuśṛṅgo vṛṣabho vayodhāḥ ||

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Pad Path

आ। ध॒र्ण॒सिः। बृ॒हत्ऽदि॑वः। ररा॑णः। विश्वे॑भिः। ग॒न्तु॒। ओम॑ऽभिः। हु॒वा॒नः। ग्नाः। वसा॑नः। ओष॑धीः। अमृ॑ध्रः। त्रि॒धातु॑ऽशृङ्गः। वृ॒ष॒भः। व॒यः॒ऽधाः ॥१३॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:43» Mantra:13 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:22» Mantra:3 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:13


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! जैसे (धर्णसिः) धारण करनेवाला (बृहद्दिवः) बड़े प्रकाश का (रराणः) दान करता हुआ (विश्वेभिः) सम्पूर्ण (ओमभिः) रक्षण आदि के करनेवालों के साथ (हुवानः) ग्रहण करता और (ग्नाः) वाणियों को (वसानः) आच्छादित करता हुआ (ओषधीः) सोमलता आदि का (अमृध्रः) नहीं नाश करनेवाला (त्रिधातुशृङ्गः) तीन धातु अर्थात् शुक्ल, रक्त, कृष्ण गुण शृङ्गों के सदृश जिसके और (वयोधाः) सुन्दर आयु को धारण करनेवाला (वृषभः) वृष्टिकारक सूर्य्य संसार का उपकारी है, वैसे ही आप संसार के उपकार के लिये (आ, गन्तु) उत्तम प्रकार प्राप्त हूजिये ॥१३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो विद्वान् तीन गुणों से युक्त प्रकृति के जानने, वाणी के जानने, नहीं हिंसा करने, औषधों से रोगों के निवारने और ब्रह्मचर्य्य आदि के बोध से अवस्था के बढ़ानेवाले होते हैं, वे ही संसार के पूज्य होते हैं ॥१३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे विद्वन् ! यथा धर्णसिर्बृहद्दिवो रराणो विश्वेभिरोमभिर्हुवानो ग्ना वसान ओषधीरमृध्रस्त्रिधातुशृङ्गो वयोधा वृषभस्सूर्य्यो जगदुपकारी वर्त्तते तथैव भवान् जगदुपकारायाऽऽगन्तु ॥१३॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (धर्णसिः) धर्त्ता (बृहद्दिवः) बृहतः प्रकाशस्य (रराणः) ददन् (विश्वेभिः) सर्वैः (गन्तु) प्राप्नोतु (ओमभिः) रक्षणादिकारकैः सह (हुवानः) आददानः (ग्नाः) वाचः। ग्नेति वाङ्नामसु पठितम्। (निघं०१.११) (वसानः) आच्छादयन् (ओषधीः) सोमलताद्याः (अमृध्रः) अहिंसकः (त्रिधातुशृङ्गः) त्रयो धातवो शुल्करक्तकृष्णगुणाः शृङ्गवद्यस्य सः (वृषभः) वर्षकः (वयोधाः) यो वयः कमनीयमायुर्दधाति सः ॥१३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । ये विद्वांसः त्रिगुणयुक्तप्रकृतिबोधका वाग्विज्ञापका अहिंस्रा औषधै रोगनिवारका ब्रह्मचर्य्यादिबोधेनायुर्वर्धका भवन्ति त एव जगत्पूज्या जायन्ते ॥१३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे विद्वान, त्रिगुणयुक्त प्रकृतीला जाणणारे, विज्ञानयुक्त वाणी असणारे, औषधींनी रोग नष्ट करणारे, ब्रह्मचर्य इत्यादींचा बोध करून दीर्घायुषी करणारे असतात तेच जगात पूज्य असतात. ॥ १३ ॥