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वि॒स॒र्माणं॑ कृणुहि वि॒त्तमे॑षां॒ ये भु॒ञ्जते॒ अपृ॑णन्तो न उ॒क्थैः। अप॑व्रतान्प्रस॒वे वा॑वृधा॒नान्ब्र॑ह्म॒द्विषः॒ सूर्या॑द्यावयस्व ॥९॥

English Transliteration

visarmāṇaṁ kṛṇuhi vittam eṣāṁ ye bhuñjate apṛṇanto na ukthaiḥ | apavratān prasave vāvṛdhānān brahmadviṣaḥ sūryād yāvayasva ||

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Pad Path

वि॒ऽस॒र्माण॑म्। कृ॒णु॒हि॒। वि॒त्तम्। ए॒षा॒म्। ये। भु॒ञ्जते॑। अपृ॑णन्तः। नः॒। उ॒क्थैः। अप॑ऽव्रतान्। प्र॒ऽस॒वे। व॒वृ॒धा॒नान्। ब्र॒ह्म॒ऽद्विषः॑। सूर्या॑त्। य॒व॒य॒स्व॒ ॥९॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:42» Mantra:9 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:18» Mantra:4 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! (ये) जो (अपृणन्तः) नहीं पूर्ण वा नहीं पालन करते हुए (भुञ्जते) भोगते हैं और (नः) हमारे (उक्थैः) उत्तम वाक्यों से (प्रसवे) उत्पन्न हुए जगत् में (वावृधानान्) अत्यन्त बढ़ते हुए (अपव्रतान्) ब्रह्मचर्य्य, सत्यभाषणादि व्रताचाररहित (ब्रह्मद्विषः) वेद वा परमात्मा से द्वेष करनेवालों को रोकते हैं (एषाम्) इन लोगों के (विसर्म्माणम्) उत्पन्न करनेवाले (वित्तम्) धन वा भोग को (कृणुहि) करो और (सूर्य्यात्) सूर्य्य से उनको (यावयस्व) अमिश्रित करो ॥९॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो लोग शुद्ध आचरणों से रहितों को शुद्ध आचरणों के सहित और अविद्वानों को विद्वान् करके नास्तिकों को रोक के अधर्म्म के आचरण से पृथक् होके निरन्तर सुखी करते, वे निरन्तर आदर करने योग्य होते हैं ॥९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे विद्वन् ! येऽपृणन्तो भुञ्जते न उक्थैः प्रसवे वावृधानानपव्रतान् ब्रह्मद्विषो निवारयन्त्येषां विसर्म्माणं वित्तं कृणुहि सूर्यात्तान् यावयस्व ॥९॥

Word-Meaning: - (विसर्माणम्) यो विसृजति तम् (कृणुहि) (वित्तम्) धनं भोगं वा (एषाम्) (ये) (भुञ्जते) (अपृणन्तः) अपूर्णा अपालयन्तो वा (नः) अस्माकम् (उक्थैः) उत्तमैर्वाक्यैः (अपव्रतान्) ब्रह्मचर्यसत्यभाषणादिव्रताचाररहितान् (प्रसवे) उत्पन्ने जगति (वावृधानान्) विवर्धमानान् (ब्रह्मद्विषः) ये ब्रह्म वेदं परमात्मानं वा द्विषन्ति (सूर्यात्) सवितुः (यावयस्व) अमिश्रितान् कुरु ॥९॥
Connotation: - हे मनुष्या ! येऽनाचारान् साचारानविदुषो विदुषः कृत्वा नास्तिकान् निरुध्याधर्माचरणात् पृथग्भूत्वा सततं सुखयन्ति ते माननीया भवन्ति ॥९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! जे लोक दुराचारी लोकांना सदाचारी करतात. अविद्वानांना विद्वान करून नास्तिकांना रोखतात. अधर्माचरणापासून पृथक राहून सतत सुखी करतात ते निरंतर आदर करण्यायोग्य असतात. ॥ ९ ॥