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उप॑ स्तुहि प्रथ॒मं र॑त्न॒धेयं॒ बृह॒स्पतिं॑ सनि॒तारं॒ धना॑नाम्। यः शंस॑ते स्तुव॒ते शंभ॑विष्ठः पुरू॒वसु॑रा॒गम॒ज्जोहु॑वानम् ॥७॥

English Transliteration

upa stuhi prathamaṁ ratnadheyam bṛhaspatiṁ sanitāraṁ dhanānām | yaḥ śaṁsate stuvate śambhaviṣṭhaḥ purūvasur āgamaj johuvānam ||

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Pad Path

उप॑। स्तु॒हि॒। प्र॒थ॒मम्। र॒त्न॒ऽधेय॑म्। बृह॒स्पति॑म्। स॒नि॒तार॑म्। धना॑नाम्। यः। शंस॑ते। स्तु॒व॒ते। शम्ऽभ॑विष्ठः। पु॒रु॒ऽवसुः॑। आ॒ऽगम॑त्। जोहु॑वानम् ॥७॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:42» Mantra:7 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:18» Mantra:2 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वानों के उपदेशविषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्या और ऐश्वर्य्य से युक्त ! (यः) जो (पुरूवसुः) बहुत धनों से युक्त (शम्भविष्ठः) अत्यन्त सुखकारक जन (शंसते) प्रशंसा करनेवाले और (स्तुवते) स्तुति करनेवाले के लिये (प्रथमम्) पहिले (रत्नधेयम्) रत्न धरने योग्य जिससे उस (जोहुवानम्) पुकारे गये वा पुकारनेवाले के लिये (बृहस्पतिम्) बड़ों के पालन करने और (धनानाम्) धनों के (सनितारम्) उत्तम प्रकार विभाग करनेवाले को (आगमत्) प्राप्त हो, उसकी आप (उप, स्तुहि) समीप में स्तुति करो ॥७॥
Connotation: - वे ही जन प्रशंसा करने योग्य होते हैं, जो सब पदार्थ बाँट अर्थात् विभाग करके खाते हैं ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वदुपदेशविषयमाह ॥

Anvay:

हे विद्यैश्वर्य्ययुक्त ! यः पुरूवसुः शम्भविष्ठो जनः शंसते स्तुवते प्रथमं रत्नधेयं जोहुवानं बृहस्पतिं धनानां सनितारमागमत् तं त्वमुप स्तुहि ॥७॥

Word-Meaning: - (उप) (स्तुहि) (प्रथमम्) आदिमम् (रत्नधेयम्) रत्नानि धेयानि तेन तम् (बृहस्पतिम्) बृहतां पालकम् (सनितारम्) संविभाजकम् (धनानाम्) (यः) (शंसते) प्रशंसकाय (स्तुवते) प्रशंसां कुर्वते (शम्भविष्ठः) योऽतिशयेन शम्भावयति सः (पुरूवसुः) पुरूणि बहूनि वसूनि धनानि यस्य सः (आगमत्) आगच्छेत् (जोहुवानम्) आहूयमानमाह्वयितारं वा ॥७॥
Connotation: - त एव प्रशंसनीया भवन्ति ये सर्वं सम्भज्य भुञ्जते ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे सर्व पदार्थ वाटून खातात तेच लोक प्रशंसा करण्यायोग्य असतात. ॥ ७ ॥