प्रति॑ मे॒ स्तोम॒मदि॑तिर्जगृभ्यात्सू॒नुं न मा॒ता हृद्यं॑ सु॒शेव॑म्। ब्रह्म॑ प्रि॒यं दे॒वहि॑तं॒ यदस्त्य॒हं मि॒त्रे वरु॑णे॒ यन्म॑यो॒भु ॥२॥
prati me stomam aditir jagṛbhyāt sūnuṁ na mātā hṛdyaṁ suśevam | brahma priyaṁ devahitaṁ yad asty aham mitre varuṇe yan mayobhu ||
प्रति॑। मे॒। स्तोम॑म्। अदि॑तिः। ज॒गृ॒भ्या॒त्। सू॒नुम्। न। मा॒ता। हृद्य॑म्। सु॒ऽशेव॑म्। ब्रह्म॑। प्रि॒यम्। दे॒वऽहि॑तम्। यत्। अस्ति॑। अ॒हम्। मि॒त्रे। वरु॑णे। यत्। म॒यः॒ऽभु ॥२॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
हे मनुष्या ! अदितिर्माता हृद्यं सूनुं न यो मे स्तोमं प्रति जगृभ्याद्यत्सुशेवं प्रियं देवहितं ब्रह्मास्ति यच्च मित्रे वरुणे मयोभ्वस्ति तदहमिष्टं मन्ये तथा यूयमपि मन्यध्वम् ॥२॥
MATA SAVITA JOSHI
N/A