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तमु ष्टुहि यः स्वि॒षुः सु॒धन्वा॒ यो विश्व॑स्य॒ क्षय॑ति भेष॒जस्य॑। यक्ष्वा॑ म॒हे सौ॑मन॒साय॑ रु॒द्रं नमो॑भिर्दे॒वमसु॑रं दुवस्य ॥११॥

English Transliteration

tam u ṣṭuhi yaḥ sviṣuḥ sudhanvā yo viśvasya kṣayati bheṣajasya | yakṣvā mahe saumanasāya rudraṁ namobhir devam asuraṁ duvasya ||

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Pad Path

तम्। ऊँ॒ इति॑। स्तु॒हि॒। यः। सु॒ऽइ॒षुः। सु॒ऽधन्वा॑। यः। विश्व॑स्य। क्षय॑ति। भे॒ष॒जस्य॑। यक्ष्वा॑। म॒हे। सौ॒म॒न॒साय॑। रु॒द्रम्। नमः॑ऽभिः। दे॒वम्। असु॑रम्। दु॒व॒स्य॒ ॥११॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:42» Mantra:11 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:19» Mantra:1 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब रुद्रविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे राजन् अथवा विद्वान् ! (यः) जो (स्विषुः) सुन्दर वाणों से युक्त (सुधन्वा) उत्तम धनुष् वाला शत्रुओं को जीतता है और (यः) जो (विश्वस्य) सम्पूर्ण जगत् के मध्य में (भेषजस्य) ओषधि की प्रवृत्ति का (क्षयति) निवास करता वा निवास कराता है (तम्) उसकी (महे) बड़े (सौमसनाय) श्रेष्ठ मन के भाव के लिये (स्तुहि) स्तुति कीजिये और श्रेष्ठ कर्म्मों को (यक्ष्वा) मिलाइये वा प्राप्त हूजिये उस (उ) ही (देवम्) श्रेष्ठ गुणों से युक्त (रुद्रम्) और दुष्टों के रुलानेवाले (असुरम्) मेघ को बड़े श्रेष्ठ मन के भाव के लिये (नमोभिः) अन्नादिकों से (दुवस्य) सेवन कीजिये ॥११॥
Connotation: - हे राजन् ! जो शस्त्र और अस्त्रों के चलाने के लिये युद्धविद्या में चतुर, वैद्यविद्या में निपुण और दुष्टों के दण्ड देनेवाले जन होवें, उनकी स्तुति कर अच्छे कर्म्मों में नियुक्त कर और अच्छे प्रकार सेवन कर समस्त राजकृत्यों को पूर्ण करो ॥११॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ रुद्रविषयमाह ॥

Anvay:

हे राजन् विद्वन् वा ! यः स्विषुः सुधन्वा शत्रूञ्जयति यो विश्वस्य मध्ये भेषजस्य प्रवृत्तिं क्षयति निवासयति तं महे सौमनसाय स्तुहि सत्कर्माणि यक्ष्वा तमु देवं रुद्रमसुरं च महे सौमनसाय नमोभिर्दुवस्य ॥११॥

Word-Meaning: - (तम्) (उ) (स्तुहि) (यः) (स्विषुः) शोभना इषवो यस्य सः (सुधन्वा) शोभनं धनुर्यस्य सः (यः) (विश्वस्य) समग्रस्य जगतः (क्षयति) निवसति निवासयति वा (भेषजस्य) औषधस्य (यक्ष्वा) सङ्गमय प्राप्नुहि वा। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (महे) महते (सौमनसाय) शोभनस्य मनसो भावाय (रुद्रम्) दुष्टानां रोदयितारम् (नमोभिः) अन्नादिभिः (देवम्) दिव्यगुणम् (असुरम्) मेघम् (दुवस्य) सेवस्व ॥११॥
Connotation: - हे राजन् ! ये शस्त्रास्त्रप्रक्षेपणाय युद्धविद्यायां कुशला वैद्यविद्यायां निपुणा दुष्टानां दण्डप्रदाश्च जनाः स्युस्तान् स्तुत्वा सत्कर्म्मसु नियोज्य सम्यक् परिचर्य सर्वाणि राजकृत्यान्यलङ्कुर्य्याः ॥११॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा! जे युद्धात शस्त्र अस्त्र चालविण्यात कुशल, वैद्यकविद्येमध्ये निपुण, दुष्टांना दंड देणारे असतील तर त्यांची स्तुती करून चांगल्या कर्मात नियुक्त करावे व सम्यक प्रकारे सेवन करून संपूर्ण राज्यकार्ये करावीत. ॥ ११ ॥