आ या॒ह्यद्रि॑भिः सु॒तं सोमं॑ सोमपते पिब। वृष॑न्निन्द्र॒ वृष॑भिर्वृत्रहन्तम ॥१॥
ā yāhy adribhiḥ sutaṁ somaṁ somapate piba | vṛṣann indra vṛṣabhir vṛtrahantama ||
आ। या॒हि॒। अद्रि॑ऽभिः। सु॒तम्। सोम॑म्। सो॒म॒ऽप॒ते॒। पि॒ब॒। वृष॑न्। इ॒न्द्र॒। वृष॑ऽभिः। वृ॒त्र॒ह॒न्ऽत॒म॒ ॥१॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब नव ऋचावाले चालीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में इन्द्र के गुणों को कहते हैं ॥१॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथेन्द्रगुणानाह ॥
हे सोमपते वृषन् वृत्रहन्तमेन्द्र ! वृषभिस्सहितस्त्वमद्रिभिः सुतं सोमं पिब सङ्ग्राममा याहि ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात इंद्र, मेघ, सूर्य, विद्वान, अविद्वानाच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.