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आ या॒ह्यद्रि॑भिः सु॒तं सोमं॑ सोमपते पिब। वृष॑न्निन्द्र॒ वृष॑भिर्वृत्रहन्तम ॥१॥

English Transliteration

ā yāhy adribhiḥ sutaṁ somaṁ somapate piba | vṛṣann indra vṛṣabhir vṛtrahantama ||

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Pad Path

आ। या॒हि॒। अद्रि॑ऽभिः। सु॒तम्। सोम॑म्। सो॒म॒ऽप॒ते॒। पि॒ब॒। वृष॑न्। इ॒न्द्र॒। वृष॑ऽभिः। वृ॒त्र॒ह॒न्ऽत॒म॒ ॥१॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:40» Mantra:1 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:11» Mantra:1 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब नव ऋचावाले चालीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में इन्द्र के गुणों को कहते हैं ॥१॥

Word-Meaning: - हे (सोमपते) ऐश्वर्य्य के स्वामिन् ! (वृषन्) बैल के सदृश आचरण करते हुए (वृत्रहन्तम) अत्यन्त धन को प्राप्त होने और (इन्द्र) ऐश्वर्य की इच्छा करनेवाले जन ! (वृषभिः) बलिष्ठों के साथ आप (अद्रिभिः) मेघों से (सुतम्) उत्पन्न हुए (सोमम्) सोमलता आदि ओषधियों के रस को (पिब) पान करिये और सङ्ग्राम को (आ, याहि) प्राप्त हूजिये ॥१॥
Connotation: - जो ऐश्वर्य्य की इच्छा करें, वे अवश्य बल और बुद्धि की वृद्धि करें ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथेन्द्रगुणानाह ॥

Anvay:

हे सोमपते वृषन् वृत्रहन्तमेन्द्र ! वृषभिस्सहितस्त्वमद्रिभिः सुतं सोमं पिब सङ्ग्राममा याहि ॥१॥

Word-Meaning: - (आ) (याहि) आगच्छ (अद्रिभिः) मेघैः (सुतम्) निष्पन्नम् (सोमम्) सोमलतादिरसम् (सोमपते) ऐश्वर्य्यपालक (पिब) (वृषन्) वृष इवाचरन् (इन्द्र) ऐश्वर्य्यमिच्छुक (वृषभिः) बलिष्ठैस्सह (वृत्रहन्तम) यो वृत्रं धनं हन्ति प्राप्नोति सोऽतिशयितस्तत्सम्बुद्धौ ॥१॥
Connotation: - य ऐश्वर्यमिच्छेयुस्तेऽवश्यं बलबुद्धिं वर्धयेयुः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात इंद्र, मेघ, सूर्य, विद्वान, अविद्वानाच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जे ऐश्वर्याची इच्छा करतात ते निश्चित बल व बुद्धीची वृद्धी करतात. ॥ १ ॥