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अस्मा॒ इत्काव्यं॒ वच॑ उ॒क्थमिन्द्रा॑य॒ शंस्य॑म्। तस्मा॑ उ॒ ब्रह्म॑वाहसे॒ गिरो॑ वर्ध॒न्त्यत्र॑यो॒ गिरः॑ शुम्भ॒न्त्यत्र॑यः ॥५॥

English Transliteration

asmā it kāvyaṁ vaca uktham indrāya śaṁsyam | tasmā u brahmavāhase giro vardhanty atrayo giraḥ śumbhanty atrayaḥ ||

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Pad Path

अस्मै॑। इत्। काव्य॑म्। वचः॑। उ॒क्थम्। इन्द्रा॑य। शंस्य॑म्। तस्मै॑। ऊँ॒ इति॑। ब्रह्म॑ऽवाहसे। गिरः॑। व॒र्ध॒न्ति॒। अत्र॑यः। गिरः॑। शु॒म्भ॒न्ति॒। अत्र॑यः ॥५॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:39» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:10» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वद्विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (इन्द्राय) अत्यन्त ऐश्वर्य्य के लिये (काव्यम्) कवियों विद्वानों से कामना करने योग्य (उक्थम्) प्रशंसित (शंस्यम्) स्तुति करने योग्य (वचः) वचन का प्रयोग करता है (अस्मै) इसके लिये (इत्) और (तस्मै) उस (ब्रह्मवाहसे) धनों को प्राप्त होनेवाले जन के लिये (अत्रयः) नहीं है तीन प्रकार के दुःख जिनमें वे (गिरः) वाणियाँ (वर्धन्ति) बढ़ती हैं (उ) और (अत्रयः) नहीं हैं तीन प्रकार के गुणों के दोष जिनमें व (गिरः) वाणियाँ (शुम्भन्ति) उत्तम आचरण कराती हैं ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो विद्वान् जन वाणियों को विद्याभ्यास से शुद्ध करते हैं, वे कवित्व और ऐश्वर्य्य को प्राप्त होते हैं ॥५॥ इस सूक्त में इन्द्र राजा प्रजा और विद्वानों के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह उनचालीसवाँ सूक्त और दशम वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! य इन्द्राय काव्यमुक्थं शंस्यं वचः प्रयुङ्क्ते अस्मा इत्तस्मै ब्रह्मवाहसे जनायाऽत्रयो गिरो वर्धन्त्यु अत्रयो गिरः शुम्भन्ति ॥५॥

Word-Meaning: - (अस्मै) (इत्) (काव्यम्) कविभिः कमनीयम् (वचः) (उक्थम्) प्रशंसितम् (इन्द्राय) परमैश्वर्य्याय (शंस्यम्) स्तोतुं योग्यम् (तस्मै) (उ) (ब्रह्मवाहसे) यो ब्रह्माणि धनानि वहति प्राप्नोति सः (गिरः) (वर्धन्ति) वर्धन्ते। अत्र व्यत्ययेन परस्मैपदम्। (अत्रयः) अविद्यमानत्रिविधदुःखाः (गिरः) वाण्यः (शुम्भन्ति) शुभाचरणयन्ति (अत्रयः) अविद्यमानत्रिविधगुणानां दोषा येषु ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्या ! ये विद्वांसो गिरः शोधयन्ति ते कवित्वमैश्वर्य्यं च प्राप्नुवन्तीति ॥५॥ अत्रेन्द्रराजप्रजाविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्येकोनचत्वारिंशत्तमं सूक्तं दशमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! जे विद्वान वाणीला विद्याभ्यासाने शुद्ध करतात ते कवित्व व ऐश्वर्य प्राप्त करतात. ॥ ५ ॥