अस्मा॒ इत्काव्यं॒ वच॑ उ॒क्थमिन्द्रा॑य॒ शंस्य॑म्। तस्मा॑ उ॒ ब्रह्म॑वाहसे॒ गिरो॑ वर्ध॒न्त्यत्र॑यो॒ गिरः॑ शुम्भ॒न्त्यत्र॑यः ॥५॥
asmā it kāvyaṁ vaca uktham indrāya śaṁsyam | tasmā u brahmavāhase giro vardhanty atrayo giraḥ śumbhanty atrayaḥ ||
अस्मै॑। इत्। काव्य॑म्। वचः॑। उ॒क्थम्। इन्द्रा॑य। शंस्य॑म्। तस्मै॑। ऊँ॒ इति॑। ब्रह्म॑ऽवाहसे। गिरः॑। व॒र्ध॒न्ति॒। अत्र॑यः। गिरः॑। शु॒म्भ॒न्ति॒। अत्र॑यः ॥५॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर विद्वद्विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥
हे मनुष्या ! य इन्द्राय काव्यमुक्थं शंस्यं वचः प्रयुङ्क्ते अस्मा इत्तस्मै ब्रह्मवाहसे जनायाऽत्रयो गिरो वर्धन्त्यु अत्रयो गिरः शुम्भन्ति ॥५॥
MATA SAVITA JOSHI
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