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यन्मन्य॑से॒ वरे॑ण्य॒मिन्द्र॑ द्यु॒क्षं तदा भ॑र। वि॒द्याम॒ तस्य॑ ते व॒यमकू॑पारस्य दा॒वने॑ ॥२॥

English Transliteration

yan manyase vareṇyam indra dyukṣaṁ tad ā bhara | vidyāma tasya te vayam akūpārasya dāvane ||

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Pad Path

यत्। मन्य॑से। वरे॑ण्यम्। इन्द्र॑। द्यु॒क्षम्। तत्। आ। भ॒र॒। वि॒द्याम॑। तस्य॑। ते॒। व॒यम्। अकू॑पारस्य। दा॒वने॑ ॥२॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:39» Mantra:2 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:10» Mantra:2 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब विद्वद्विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य से युक्त ! आप (यत्) जिस (वरेण्यम्) स्वीकार करने योग्य (द्युक्षम्) धर्म्म और विद्या के प्रकाश से युक्त को (मन्यसे) मानते हो (तत्) उसको हम लोगों के लिये (आ, भर) धारण कीजिये जिससे (अकूपारस्य) श्रेष्ठ है पार जिनका (तस्य) उन (ते) आपके (दावने) दाता के लिये (वयम्) हम लोग प्रयत्न को (विद्याम) जानें ॥२॥
Connotation: - हे विद्वन् ! आप जिस-जिस उत्तम विषय को जानते हैं, उसका हम लोगों के प्रति उपदेश कीजिये, जिससे हम लोग आपके राजकार्य्य को पूर्णरूप से करने को समर्थ होवें ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्वद्विषयमाह ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! त्वं यद्वरेण्यं द्युक्षं मन्यसे तदस्मभ्यमा भर यतोऽकूपारस्य तस्य ते दावने वयं प्रयत्नं विद्याम ॥२॥

Word-Meaning: - (यत्) (मन्यसे) (वरेण्यम्) वरितुमर्हम् (इन्द्र) परमैश्वर्य्ययुक्त (द्युक्षम्) धर्मविद्याप्रकाशयुक्तम् (तत्) (आ) (भर) (विद्याम) जानीयाम (तस्य) (ते) (वयम्) (अकूपारस्य) अकुत्सितः पारो यस्य तस्य (दावने) दात्रे ॥२॥
Connotation: - हे विद्वंस्त्वं यद्यदुत्तमं जानासि तदस्मान् प्रत्युपदिश येन वयं तव राजकार्य्यमलंकर्त्तुं शक्नुयाम ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे विद्वाना! तू जे जे उत्तम विषय जाणतोस त्यांचा आम्हाला उपदेश कर. ज्यामुळे आम्ही राज्यकार्य करण्यास समर्थ होऊ शकू. ॥ २ ॥