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यो रोहि॑तौ वा॒जिनौ॑ वा॒जिनी॑वान्त्रि॒भिः श॒तैः सच॑मना॒वदि॑ष्ट। यूने॒ सम॑स्मै क्षि॒तयो॑ नमन्तां श्रु॒तर॑थाय मरुतो दुवो॒या ॥६॥

English Transliteration

yo rohitau vājinau vājinīvān tribhiḥ śataiḥ sacamānāv adiṣṭa | yūne sam asmai kṣitayo namantāṁ śrutarathāya maruto duvoyā ||

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Pad Path

यः। रोहि॑तौ। वा॒जिनौ॑। वा॒जिनी॑ऽवान्। त्रि॒ऽभिः। श॒तैः। सच॑मानौ। अदि॑ष्ट। यूने॑। सम्। अ॒स्मै॒। क्षि॒तयः। न॒म॒न्ता॒म्। श्रु॒तऽर॑थाय। म॒रु॒तः॒। दु॒वः॒ऽया ॥६॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:36» Mantra:6 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:7» Mantra:6 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब शिल्पिकार्य्यविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (मरुतः) मनुष्यो ! (यः) जो (वाजिनीवान्) वेग की क्रिया का जाननेवाला (त्रिभिः) तीन (शतैः) सैकड़ों से (अस्मै) इस (यूने) युवा पुरुष के लिये (सचमानौ) मिले हुए (दुवोया) जो परिचरण को प्राप्त होते हैं उन (वाजिनौ) बड़े वेगवाले (रोहितौ) बिजुली और प्रसिद्ध अग्नि का (अदिष्ट) उपदेश देवे उस (श्रुतरथाय) सुने गये वाहन जिसके उसके लिये (क्षितयः) मनुष्य (सम्, नमन्ताम्) अच्छे प्रकार नम्र होवें ॥६॥
Connotation: - जो विमान आदि वाहन के कार्य्यों में अग्नि आदि पदार्थों का संप्रयोग करते हैं, वे जितने तीन सौ घोड़ों से वाहन शीघ्र पहुँचाते हैं, उतना बल उस कला में होता है और जो इस प्रकार शिल्पविद्या के कृत्यों में प्रसिद्ध होते हैं, उनका सत्कार सब करते हैं ॥६॥ इस सूक्त में इन्द्र विद्वान् और शिल्पी के कृत्य वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह छत्तीसवाँ सूक्त और सप्तम वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ शिल्पिकार्य्यविषयमाह ॥

Anvay:

हे मरुतो ! यो वाजिनीवाँस्त्रिभिः शतैरस्मै यूने सचमानौ दुवोया वाजिनौ रोहतावदिष्ट तस्मै श्रुतरथाय क्षितयः सन्नमन्ताम् ॥६॥

Word-Meaning: - (यः) (रोहितौ) विद्युत्प्रसिद्धवह्नी (वाजिनौ) अतिवेगवन्तौ (वाजिनीवान्) वेगक्रियाज्ञानयुक्तः (त्रिभिः) (शतैः) (सचमानौ) सम्बद्धौ (अदिष्ट) दिशेत् (यूने) पूर्णयुवावस्थाय (सम्) (अस्मै) (क्षितयः) मनुष्याः (नमन्ताम्) (श्रुतरथाय) श्रुता रथा यस्य (मरुतः) मनुष्याः (दुवोया) यौ दुवः परिचरणं यातस्तौ ॥६॥
Connotation: - ये विमानादियानकार्य्येष्वग्न्यादिपदार्थान् संप्रयोजयन्ति ते यावता त्रिभिः शतैरश्वैर्यानं सद्यो नयन्ति तावद्बलं तस्यां कलायां भवति। य एव शिल्पविद्याकृत्येषु प्रसिद्धा जायन्ते तेषां सत्कारः सर्वे कुर्वन्तीति ॥६॥ अत्रेन्द्रविद्वच्छिल्पिकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति षट्त्रिंशत्तमं सूक्तं सप्तमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे विमान इत्यादी यानात अग्नी इत्यादी पदार्थांचा उपयोग करतात त्या यंत्रामध्ये तीनशे घोडे जुंपलेली वाहने जशी शीघ्र चालतात तितके बल असते व जे या प्रकारे शिल्पविद्येच्या कार्यात प्रसिद्ध असतात त्यांचा सत्कार सर्व जण करतात. ॥ ६ ॥