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त्वामिद्वृ॑त्रहन्तम॒ जना॑सो वृ॒क्तब॑र्हिषः। उ॒ग्रं पू॒र्वीषु॑ पू॒र्व्यं हव॑न्ते॒ वाज॑सातये ॥६॥

English Transliteration

tvām id vṛtrahantama janāso vṛktabarhiṣaḥ | ugram pūrvīṣu pūrvyaṁ havante vājasātaye ||

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Pad Path

त्वाम्। इत्। वृ॒त्र॒ह॒न्ऽत॒म॒। जना॑सः। वृ॒क्तऽबर्हिषः। उ॒ग्रम्। पू॒र्वीषु॑। पू॒र्व्यम्। हव॑न्ते। वाज॑ऽसातये ॥६॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:35» Mantra:6 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:6» Mantra:1 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (वृत्रहन्तम) अतिशय करके धन को प्राप्त होनेवाले राजन् ! (वृक्तबर्हिषः) विदीर्ण किया है हवन किये हुए पदार्थों से अन्तरिक्ष को जिन्होंने ऐसे ऋत्विक् (जनासः) प्रसिद्ध पुण्यात्मा जन (वाजसातये) संग्राम वा अन्न आदि के विभाग के लिये (उग्रम्) दुष्टों में कठिन स्वभाववाले और (पूर्वीषु) प्राचीन प्रजाओं में (पूर्व्यम्) पूर्व राजाओं से किया गया सत्कार जिनका ऐसे (त्वाम्) आपकी (हवन्ते) स्तुति करते वा ग्रहण करते हैं, वह आप उनकी सर्वदा (इत्) ही उत्तम प्रकार रक्षा कीजिये ॥६॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो प्रतिष्ठित क्षत्रियों के कुल में उत्पन्न हुआ, विद्या और विनय आदि से युक्त और प्रजा के पालन में तत्पर इच्छा जिसकी ऐसा होवे, उसको राजा मानो ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे वृत्रहन्तम राजन् ! वृक्तबर्हिषो जनासो वाजसातय उग्रं पूर्वीषु पूर्व्यं त्वां हवन्ते स त्वं तान् सर्वदेत्संरक्ष ॥६॥

Word-Meaning: - (त्वाम्) (इत्) (वृत्रहन्तम) यो वृत्रं धनं हन्ति प्राप्नोति सोऽतिशयितस्तत्सम्बुद्धौ (जनासः) प्रसिद्धाः पुण्यात्मानः (वृक्तबर्हिषः) वृक्तं विदीर्णीकृतं हुतपदार्थैरन्तरिक्षं यैस्त ऋत्विजः (उग्रम्) दुष्टेषु कठिनस्वभावम् (पूर्वीषु) प्राचीनासु प्रजासु (पूर्व्यम्) पूर्वै राजभिः कृतसत्कारम् (हवन्ते) स्तुवन्ति गृह्णन्ति वा (वाजसातये) सङ्ग्रामायान्नादीनां विभागाय वा ॥६॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यः प्रतिष्ठितक्षत्रियकुलजो विद्याविनयादिसम्पन्नः प्रजापालनतत्परेच्छो भवेत्तं राजानं मन्यध्वम् ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! जो प्रतिष्ठित क्षत्रिय कुलात जन्मला असेल, विद्या व विनयाने संपन्न असेल, प्रजापालनात तत्पर असण्याची इच्छा करणारा असेल, त्यालाच तुम्ही राजा माना. ॥ ६ ॥