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यदि॑न्द्र ते॒ चत॑स्रो॒ यच्छू॑र॒ सन्ति॑ ति॒स्रः। यद्वा॒ पञ्च॑ क्षिती॒नामव॒स्तत्सु न॒ आ भ॑र ॥२॥

English Transliteration

yad indra te catasro yac chūra santi tisraḥ | yad vā pañca kṣitīnām avas tat su na ā bhara ||

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Pad Path

यत्। इ॒न्द्र॒। ते॒। चत॑स्रः। यत्। शू॒र॒। सन्ति॑। ति॒स्रः। यत्। वा॒। पञ्च॑। क्षि॒ती॒नाम्। अवः॑। तत्। सु। नः॒। आ। भ॒र॒ ॥२॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:35» Mantra:2 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:5» Mantra:2 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (शूर) वीर (इन्द्र) राजन् ! (यत्) जो (ते) आपकी (चतस्रः) चार साम, दाम, दण्ड और भेद नामक वृत्ति और (यत्) जो (तिस्रः) तीन उत्तम प्रकार शिक्षित सभा, सेना और प्रजा और (पञ्च) पृथिवी, अप्, तेज, वायु, आकाश पाँच तत्त्व (सन्ति) हैं (वा) वा (यत्) जो (क्षितीनाम्) मनुष्यों का (अवः) रक्षण आदि है (तत्) उसको (नः) हम लोगों के लिये (सु) उत्तमता से (आ, भर) सब प्रकार धारण करो वा पुष्ट करो ॥२॥
Connotation: - वही राज्य बढ़ाने को समर्थ होवे कि जो राज्य के अङ्ग सब पूर्ण उत्तम प्रकार ग्रहण करे ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे शूरेन्द्र राजन् ! यत्ते चतस्रो यत्तिस्रः पञ्च च सन्ति वा यत् क्षितीनामवोऽस्ति तन्नः स्वा भर ॥२॥

Word-Meaning: - (यत्) याः (इन्द्र) राजन् (ते) तव (चतस्रः) सामदामदण्डभेदाख्या वृत्तयः (यत्) (शूर) (सन्ति) (तिस्रः) सुशिक्षिता सभा सेना प्रजा (यत्) (वा) (पञ्च) भूम्यादीनि पञ्चतत्त्वानि (क्षितीनाम्) मनुष्याणाम् (अवः) रक्षणादिकम् (तत्) (सु) (नः) अस्मभ्यम् (आ) (भर) समन्ताद्धर पुष्णीहि वा ॥२॥
Connotation: - स एव राज्यं वर्धयितुं शक्नुयाद्यो राज्याङ्गानि सर्वाणि पूर्णानि सङ्गृह्णीयात् ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो राज्याच्या सर्व गोष्टी उत्तम प्रकारे स्वीकारतो तोच राज्य वाढविण्यास समर्थ असतो. ॥ २ ॥