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स॒ह॒स्र॒सामाग्नि॑वेशिं गृणीषे॒ शत्रि॑मग्न उप॒मां के॒तुम॒र्यः। तस्मा॒ आपः॑ सं॒यतः॑ पीपयन्त॒ तस्मि॑न्क्ष॒त्रमम॑वत्त्वे॒षम॑स्तु ॥९॥

English Transliteration

sahasrasām āgniveśiṁ gṛṇīṣe śatrim agna upamāṁ ketum aryaḥ | tasmā āpaḥ saṁyataḥ pīpayanta tasmin kṣatram amavat tveṣam astu ||

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Pad Path

स॒ह॒स्र॒ऽसाम्। आग्नि॑ऽवेशिम्। गृ॒णी॒षे॒। शत्रि॑म्। अ॒ग्ने॒। उ॒प॒ऽमाम्। के॒तुम्। अ॒र्यः। तस्मै॑। आपः॑। सं॒ऽयतः॑। पी॒प॒य॒न्त॒। तस्मि॑न्। क्ष॒त्रम्। अम॑ऽवत्। त्वे॒षम्। अ॒स्तु॒ ॥९॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:34» Mantra:9 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:4» Mantra:4 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) अग्नि के सदृश तेजस्वी राजन् ! (अर्यः) स्वामी आप (सहस्रसाम्) असङ्ख्य पदार्थों के विभाग करने (आग्निवेशिम्) अग्नि को प्रवेश कराने और (शत्रिम्) दुःख के नाश करनेवाले (उपमाम्) दृष्टान्त और (केतुम्) बुद्धि की (गृणीषे) स्तुति करते हो (तस्मै) उन आपके लिये (आपः) जलों के सदृश प्रजायें (संयतः) इन्द्रियों के निग्रह से युक्त हुईं (पीपयन्त) तृप्ति करती हैं (तस्मिन्) उन आप राजा में (अमवत्) गृह के तुल्य (त्वेषम्) प्रकाश से युक्त (क्षत्रम्) धन वा राज्य (अस्तु) होवे ॥९॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो राजा होने की इच्छा करे तो सर्व शास्त्रों में प्रविष्ट हुई स्वच्छ और उत्तम गुणों से युक्त बुद्धि को प्राप्त होकर जैसे पितृजन पुत्रों का पालन करते वैसे प्रजाओं का पालन करे, ऐसा करने पर श्रेष्ठ राज्य बढ़े ॥९॥ इस सूक्त में इन्द्र विद्वान् और प्रजा के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह चौंतीसवाँ सूक्त और चौथा वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे अग्ने राजन् ! अर्यस्त्वं सहस्रसामाग्निवेशिं शत्रिमुपमां केतुं गृणीषे तस्मै त आप इव संयतः प्रजाः पीपयन्त तस्मिंस्त्वयि राज्ञि अमवत्त्वेषं क्षत्रमस्तु ॥९॥

Word-Meaning: - (सहस्रसाम्) यः सहस्रानसंख्यातान् पदार्थान् सनति विभजति तम् (आग्निवेशिम्) योऽग्निं प्रवेशयति तम् (गृणीषे) स्तौषि (शत्रिम्) दुःखविच्छेदकम् (अग्ने) पावक इव (उपमाम्) दृष्टान्तम् (केतुम्) प्रज्ञाम् (अर्यः) स्वामी (तस्मै) (आपः) जलानीव प्रजाः (संयतः) संयमयुक्ताः (पीपयन्त) तर्पयन्ति (तस्मिन्) (क्षत्रम्) धनं राज्यं वा (अमवत्) गृहेण तुल्यम् (त्वेषम्) प्रकाशयुक्तम् (अस्तु) ॥९॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यदि राजा भवितुमिच्छेत्तर्हि सर्वशास्त्रविशारदीं शुभगुणाढ्यां प्रज्ञां प्राप्य पितृवत्प्रजाः पालयेदेवं कृते सति प्रशस्तं राष्ट्रं वर्धेतेति ॥९॥ अत्रेन्द्रविद्वत्प्रजागुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति चतुस्त्रिंशत्तमं सूक्तं चतुर्थो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्याला राजा होण्याची इच्छा असेल त्याने जसे पितृगण पुत्रांचे पालन करतात तसे सर्व शास्त्रात प्रवीण व उत्तम गुणयुक्त बुद्धीने प्रजेचे पालन करावे. याप्रमाणे श्रेष्ठ राज्याचे वर्धन करावे. ॥ ९ ॥