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यो अ॑स्मै घ्रं॒स उ॒त वा॒ य ऊध॑नि॒ सोमं॑ सु॒नोति॒ भव॑ति द्यु॒माँ अह॑। अपा॑प श॒क्रस्त॑त॒नुष्टि॑मूहति त॒नूशु॑भ्रं म॒घवा॒ यः क॑वास॒खः ॥३॥

English Transliteration

yo asmai ghraṁsa uta vā ya ūdhani somaṁ sunoti bhavati dyumām̐ aha | apāpa śakras tatanuṣṭim ūhati tanūśubhram maghavā yaḥ kavāsakhaḥ ||

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Pad Path

यः। अ॒स्मै॒। घ्रं॒से। उ॒त। वा॒। यः। ऊध॑नि। सोमम्। सु॒नोति॑। भव॑ति। द्यु॒ऽमान्। अह॑। अप॑ऽअप। श॒क्रः। त॒त॒नुष्टि॑म्। ऊ॒ह॒ति॒। त॒नूऽशु॑भ्रम्। म॒घऽवा॑। यः। क॒व॒ऽस॒खः ॥३॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:34» Mantra:3 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:3» Mantra:3 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वद्विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यः) जो (अस्मै) इसके लिये (घ्रंसे) दिन में (उत) भी (वा) अथवा (ऊधनि) प्रभातसमय में (सोमम्) जल का (सुनोति) पान करता और (अह) विशेष करके ग्रहण करने में (द्युमान्) बहुत विद्या प्रकाशवाला (भवति) होता तथा (यः) जो (शक्रः) शक्तिमान् (ततनुष्टिम्) विस्तार की (ऊहति) तर्कना करता और (यः) जो (कवासखः) विद्वान् जन मित्र जिसके ऐसा (मघवा) प्रशंसित धनयुक्त पुरुष (तनूशुभ्रम्) शुद्ध शरीरवाले की तर्कना करता है, वह निरन्तर दुःख को (अपाप) दूर करने की तर्कना करता है ॥३॥
Connotation: - जो मनुष्य दिन और रात्रि पुरुषार्थ करते हैं, वे निरन्तर सुखी होते हैं ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! योऽस्मै घ्रंस उत वोधनि सोमं सुनोत्यह द्युमान् भवति यः शक्रः ततनुष्टिमूहति यः कवासखो मघवा तनूशुभ्रमूहति स सततं दुःखमपापोहति ॥३॥

Word-Meaning: - (यः) (अस्मै) (घ्रंसे) दिने। घ्रंस इत्यहर्नामसु पठितम्। (निघं०१।९) (उत) अपि (वा) पक्षान्तरे (यः) (ऊधनि) उषः समये (सोमम्) जलम् (सुनोति) पिबति (भवति) (द्युमान्) बहुविद्याप्रकाशः (अह) विशेषेण ग्रहणे (अपाप) दूरीकरणे (शक्रः) शक्तिमान् (ततनुष्टिम्) विस्तारम् (ऊहति) वितर्कयति (तनूशुभ्रम्) शुभ्रा शुद्धा तनूर्यस्य तम् (मघवा) प्रशंसितधनवान् (यः) (कवासखः) कविः सखा यस्य ॥३॥
Connotation: - ये मनुष्या अहर्निशं पुरुषार्थयन्ति ते सततं सुखिनो जायन्ते ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी माणसे सतत पुरुषार्थ करतात ती निरंतर सुखी होतात. ॥ ३ ॥