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उ॒त त्ये मा॑ ध्व॒न्य॑स्य॒ जुष्टा॑ लक्ष्म॒ण्य॑स्य सु॒रुचो॒ यता॑नाः। म॒ह्ना रा॒यः सं॒वर॑णस्य॒ ऋषे॑र्व्र॒जं न गावः॒ प्रय॑ता॒ अपि॑ ग्मन् ॥१०॥

English Transliteration

uta tye mā dhvanyasya juṣṭā lakṣmaṇyasya suruco yatānāḥ | mahnā rāyaḥ saṁvaraṇasya ṛṣer vrajaṁ na gāvaḥ prayatā api gman ||

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Pad Path

उ॒त। त्ये। मा॒। ध्व॒न्य॑स्य। जुष्टाः॑। ल॒क्ष्म॒ण्य॑स्य। सु॒ऽरुचः॑। यता॑नाः। म॒ह्ना। रा॒यः। सं॒ऽवर॑णस्य। ऋषेः॑। व्र॒जम्। न। गावः॑। प्रऽय॑ताः। अपि॑। ग्म॒न् ॥१०॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:33» Mantra:10 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:2» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - जो (ध्वन्यस्य) ध्वनियों में कुशल और (संवरणस्य) स्वीकार किये हुए (रायः) धन के (मह्ना) महत्त्व से (उत) और (लक्ष्मण्यस्य) श्रेष्ठ लक्षणों में उत्पन्न (ऋषेः) मन्त्रों के अर्थ जाननेवाले के सम्बन्ध में (प्रयताः) प्रयत्न करते हुए जन हैं (त्ये) वे (गावः) गौवें (व्रजम्) गोष्ठ को (न) जैसे (अपि) निश्चित (ग्मन्) जाती हैं, वैसे महत्त्व से (मा) मुझ को भी प्राप्त होते हैं और जो (यतानाः) यत्न करती हुई (सुरुचः) उत्तम प्रीतिवाली मुझ को (जुष्टाः) प्रसन्नतापूर्वक प्राप्त हैं, उनको सब प्राप्त होवें ॥१०॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो मनुष्य प्रयत्न से नहीं प्राप्त हुए की प्राप्ति और प्राप्त हुए की रक्षा करते हैं, वे जैसे बछड़ों को गौवें वैसे धन को प्राप्त होते हैं ॥१०॥ इस सूक्त में इन्द्र और विद्वान् के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह तेंतीसवाँ सूक्त और द्वितीय वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

ये ध्वन्यस्य संवरणस्य रायो मह्नोत लक्ष्मण्यस्यर्षेः प्रयतास्त्ये गावो व्रजन्नापि ग्मन् तथा मह्ना मा मामपि ग्मन्। या यतानाः सुरुचो मा जुष्टाः सन्ति ताः सर्वे प्राप्नुवन्तु ॥१०॥

Word-Meaning: - (उत) (त्ये) (मा) माम् (ध्वन्यस्य) ध्वनिषु कुशलस्य (जुष्टाः) प्रीताः (लक्ष्मण्यस्य) सुलक्षणेषु भवस्य (सुरुचः) सुष्ठुप्रीतिमत्यः (यतानाः) (मह्ना) महत्त्वेन (रायः) धनस्य (संवरणस्य) स्वीकृतस्य (ऋषेः) मन्त्रार्थविदः (व्रजम्) व्रजन्ति यस्मिन् (न) इव (गावः) धेनवः (प्रयताः) प्रयतमानाः (अपि) (ग्मन्) गच्छन्ति ॥१०॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। ये मनुष्याः प्रयत्नेनाऽप्राप्तस्य प्राप्तिं लब्धस्य रक्षणं कुर्वन्ति ते वत्सान् गाव इव धनमाप्नुवन्तीति ॥१०॥ अत्रेन्द्रविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति त्रयस्त्रिंशत्तमं सूक्तं द्वितीयो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी माणसे प्रयत्नपूर्वक अप्राप्तीची प्राप्ती व प्राप्त केलेल्याचे रक्षण करतात. वासरू जसे गाईला भेटते तसे ते धन मिळवितात. ॥ १० ॥