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त्यं चि॑दस्य॒ क्रतु॑भि॒र्निष॑त्तमम॒र्मणो॑ वि॒ददिद॑स्य॒ मर्म॑। यदीं॑ सुक्षत्र॒ प्रभृ॑ता॒ मद॑स्य॒ युयु॑त्सन्तं॒ तम॑सि ह॒र्म्ये धाः ॥५॥

English Transliteration

tyaṁ cid asya kratubhir niṣattam amarmaṇo vidad id asya marma | yad īṁ sukṣatra prabhṛtā madasya yuyutsantaṁ tamasi harmye dhāḥ ||

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Pad Path

त्यम्। चि॒त्। अ॒स्य॒। क्रतु॑ऽभिः। निऽस॑त्तम्। अ॒म॒र्मणः॑। वि॒दत्। इत्। अ॒स्य॒। मर्म॑। यत्। ई॒म्। सु॒ऽक्ष॒त्र॒। प्रऽभृ॑ता। मद॑स्य। युयु॑त्सन्तम्। तम॑सि। ह॒र्म्ये। धाः ॥५॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:32» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:32» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब शिल्पविद्या के जाननेवाले विद्वान् के गुणों को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (सुक्षत्र) श्रेष्ठ क्षत्रियकुल वा धन से युक्त राजन् ! आप (अस्य) इस (अमर्मणः) मर्म की बातों से रहित शत्रु की (क्रतुभिः) बुद्वि वा कर्म्मों से (निषत्तम्) स्थित (त्यम्) उसको (चित्) तथा (अस्य) इस मेघ के और (मदस्य) आनन्द के (प्रभृता) अत्यन्त धारण करने वा पोषण करने में (यत्) जिस (मर्म) गुप्त अवयव को (इत्) ही (विदत्) प्राप्त होवे, उसको (ईम्) सब प्रकार प्राप्त हुए (युयुत्सन्तम्) युद्ध करने की इच्छा करते हुए को (तमसि) रात्रि में (हर्म्ये) प्रासाद के ऊपर आप (धाः) धारण कीजिये ॥५॥
Connotation: - जो पदार्थों के गुप्त स्वरूपों को जान के बुद्धि से शिल्पविद्या की वृद्धि करते हैं, वे उत्तम राज्य और ऐश्वर्ययुक्त होते हैं ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ शिल्पविद्याविद्गुणानाह ॥

Anvay:

हे सुक्षत्र राजन् ! भवानस्यामर्मणः क्रतुभिर्निषत्तं त्यं चिदस्य मदस्य प्रभृता यन्मर्मेद्विदत्तमीं युयुत्सन्तं तमसि हर्म्ये त्वं धाः ॥५॥

Word-Meaning: - (त्यम्) तम् (चित्) अपि (अस्य) शत्रोः (क्रतुभिः) प्रज्ञाभिः कर्मभिर्वा (निषत्तम्) निषष्णम् (अमर्मणः) अविद्यमानानि मर्माणि यस्य तस्य (विदत्) विन्देत (इत्) एव (अस्य) मेघस्य (मर्म) गुह्यावयवम् (यत्) यम् (ईम्) (सुक्षत्र) शोभनं क्षत्रं क्षत्रियकुलं धनं वा यस्य तत्सबुद्धौ। क्षत्रमिति धननामसु पठितम्। (निघं०२।१) (प्रभृता) प्रकर्षेण धारणे पोषणे वा (मदस्य) हर्षस्य (युयुत्सन्तम्) योद्धुमिच्छन्तम् (तमसि) रात्रौ (हर्म्ये) प्रासादे (धाः) धेहि ॥५॥
Connotation: - ये पदार्थानां गुप्तानि स्वरूपाणि विज्ञाय प्रज्ञया शिल्पविद्यां वर्धयन्ति ते सुराज्यैश्वर्या भवन्ति ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे पदार्थांच्या गुप्त स्वरूपाला जाणून बुद्धीने शिल्पविद्येची वृद्धी करतात ते उत्तम राज्य व ऐश्वर्य प्राप्त करतात. ॥ ५ ॥