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त्यं चि॑देषां स्व॒धया॒ मद॑न्तं मि॒हो नपा॑तं सु॒वृधं॑ तमो॒गाम्। वृष॑प्रभर्मा दान॒वस्य॒ भामं॒ वज्रे॑ण व॒ज्री नि ज॑घान॒ शुष्ण॑म् ॥४॥

English Transliteration

tyaṁ cid eṣāṁ svadhayā madantam miho napātaṁ suvṛdhaṁ tamogām | vṛṣaprabharmā dānavasya bhāmaṁ vajreṇa vajrī ni jaghāna śuṣṇam ||

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Pad Path

त्यम्। चि॒त्। ए॒षा॒म्। स्व॒धया॑। मद॑न्तम्। मि॒हः। नपा॑तम्। सु॒ऽवृध॑म्। त॒मः॒ऽगाम्। वृष॑ऽप्रभर्मा। दा॒न॒वस्य॑। भाम॑म्। वज्रे॑ण। व॒ज्री। नि। ज॒घा॒न॒। शुष्ण॑म् ॥४॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:32» Mantra:4 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:32» Mantra:4 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे सेना के ईश वीरपुरुष ! आप (एषाम्) इन वीरों के मध्य में (स्वधया) अन्न आदि से (मदन्तम्) प्रसन्न होता हुआ जो जीव (त्यम्) उसके (चित्) समान जैसे (वृषप्रभर्मा) वर्षनेवाले मेघ को धारण करनेवाला सूर्य्य (मिहः) वृष्टि के (नपातम्) नहीं गिरनेवाले (सुवृधम्) सुन्दर बढ़ते हुए (तमोगाम्) अन्धकार को प्राप्त अर्थात् सघनघन मेघ को (जघान) नाश करे, वैसे (वज्री) उत्तम शस्त्र और अस्त्रों से युक्त होते हुए (वज्रेण) तीव्र शस्त्र से (दानवस्य) दुष्टजन के (शुष्णम्) सुखानेवाले बलवान् (भामम्) क्रोध को (नि) निरन्तर नाश करिये ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं । हे राजन् ! जैसे सूर्य्य अति विस्तारयुक्त मेघ का नाश कर भूमि में गिरा के जगत् की रक्षा करता है, वैसे ही अतिप्रबल भी शत्रुओं का नाश कर नीचे गिरा के न्याय से प्रजाओं का पालन कीजिये ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजविषयमाह ॥

Anvay:

हे सेनेश वीर ! भवानेषां स्वधया मदन्तं त्यं चित् यथा वृषप्रभर्मा सूर्यो मिहो नपातं सुवृधं तमोगां जघान तथा वज्री सन् वज्रेण दानवस्य शुष्णं भामं नि जघान ॥४॥

Word-Meaning: - (त्यम्) तम् (चित्) इव (एषाम्) वीराणां मध्ये (स्वधया) अन्नादिना (मदन्तम्) हर्षन्तम् (मिहः) वृष्टेः (नपातम्) अपतनशीलम् (सुवृधम्) सुष्ठुवर्धमानम् (तमोगाम्) प्राप्ताऽन्धकारम् (वृषप्रभर्मा) यो वर्षणशीलं मेघं प्रबिभर्ति सः (दानवस्य) दुष्टजनस्य (भामम्) क्रोधम् (वज्रेण) तीव्रेण शस्त्रेण (वज्री) प्रशस्तशस्त्रास्त्रयुक्तः (नि) (जघान) निहन्यात् (शुष्णम्) शोषकं बलवन्तम् ॥४॥
Connotation: - अत्र [उपमा]वाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। हे राजन् ! यथा सूर्य्योऽतिविस्तीर्णं मेघं विछिद्य भूमौ निपात्य जगद्रक्षति तथैवाऽतिप्रबलानापि शत्रून् विदार्याऽधो निपात्य न्यायेन प्रजाः पालय ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. हे राजा! सूर्य जसा विस्तारलेल्या मेघाचा नाश करून त्याला भूमीवर पाडतो व जगाचे रक्षण करतो तसेच अति प्रबळ शत्रूंचा नाश करून न्यायाने प्रजेचे पालन कर. ॥ ४ ॥