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त्वमुत्साँ॑ ऋ॒तुभि॑र्बद्बधा॒नाँ अरं॑ह॒ ऊधः॒ पर्व॑तस्य वज्रिन्। अहिं॑ चिदुग्र॒ प्रयु॑तं॒ शया॑नं जघ॒न्वाँ इ॑न्द्र॒ तवि॑षीमधत्थाः ॥२॥

English Transliteration

tvam utsām̐ ṛtubhir badbadhānām̐ araṁha ūdhaḥ parvatasya vajrin | ahiṁ cid ugra prayutaṁ śayānaṁ jaghanvām̐ indra taviṣīm adhatthāḥ ||

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Pad Path

त्वम्। उत्सा॑न्। ऋ॒तुऽभिः॑। ब॒द्ब॒धा॒नान्। अरं॑ह। ऊधः॑। पर्व॑तस्य। व॒ज्रि॒न्। अहि॑म्। चि॒त्। उ॒ग्र॒। प्रऽयु॑तम्। शया॑नम्। ज॒घ॒न्वान्। इ॒न्द्र॒। तवि॑षीम्। अ॒ध॒त्थाः॒ ॥२॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:32» Mantra:2 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:32» Mantra:2 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (वज्रिन्) अच्छे वज्रवाले और (उग्र) तेजस्वी (इन्द्र) सूर्य्य के सदृश वर्त्तमान राजन् ! (त्वम्) आप, जैसे खेती करनेवाले जन (ऋतुभिः) वसन्त आदि ऋतुओं से (बद्बधानान्) अत्यन्त बद्ध हुओं को (उत्सान्) कूपों के सदृश (अरंहः) चलाता है और जैसे सूर्य्य (पर्वतस्य) मेघ के (ऊधः) जलाधार घनसमूह को (चित्) और (प्रयुतम्) बहुत प्रकार (शयानम्) शयन करते हुए के सदृश आचरण करते हुए (अहिम्) मेघ का (जघन्वान्) नाश करता है, वैसे आप (तविषीम्) बलयुक्त सेना का (अधत्थाः) धारण करिये ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जैसे खेती करनेवाले जन कूपों से जल को क्षेत्रों के प्रति प्राप्त कर अन्न उत्पन्न करके सब ऋतुओं में सुख और ऐश्वर्य्य की वृद्धि करते हैं, वैसे ही आप प्रजाओं की उन्नति कीजिये ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे वज्रिन्नुग्रेन्द्र राजँस्त्वं यथा कृषीबला ऋतुभिर्बद्धानानुत्सानरंहो यथा सूर्य्यः पर्वतस्योधश्चित् प्रयुतं शयानमहिं जघन्वाँस्तथा त्वं तविषीमधत्थाः ॥२॥

Word-Meaning: - (त्वम्) (उत्सान्) कूपानिव (ऋतुभिः) वसन्तादिभिः (बद्बधानान्) सम्बद्धान् (अरंहः) गमयति (ऊधः) जलाधारं घनसमूहम् (पर्वतस्य) मेघस्य (वज्रिन्) प्रशस्तवज्रवन् (अहिम्) मेघम् (चित्) (उग्र) तेजस्विन् (प्रयुतम्) बहुविधम् (शयानम्) शयानमिवाचरन्तम् (जघन्वान्) हन्ति (इन्द्र) सूर्यवद्वर्त्तमान (तविषीम्) बलयुक्तां सेनाम् (अधत्थाः) दध्याः ॥२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा कृषीबलाः कूपेभ्यो जलं क्षेत्राणि नीत्वा शस्यानुत्पाद्य सर्वर्त्तुषु सुखैश्वर्यमुन्नयन्ति तथैव त्वं प्रजा उन्नय ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे शेतकरी विहिरीतून पाणी काढून शेती सिंचन करतात व अन्न उत्पन्न करून सर्व ऋतूंमध्ये सुख व ऐश्वर्य वाढवितात तसेच (हे राजा) तूही प्रजेची उन्नती कर. ॥ २ ॥