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ए॒वा हि त्वामृ॑तु॒था या॒तय॑न्तं म॒घा विप्रे॑भ्यो॒ दद॑तं शृ॒णोमि॑। किं ते॑ ब्र॒ह्माणो॑ गृहते॒ सखा॑यो॒ ये त्वा॒या नि॑द॒धुः काम॑मिन्द्र ॥१२॥

English Transliteration

evā hi tvām ṛtuthā yātayantam maghā viprebhyo dadataṁ śṛṇomi | kiṁ te brahmāṇo gṛhate sakhāyo ye tvāyā nidadhuḥ kāmam indra ||

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Pad Path

ए॒व। हि। त्वाम्। ऋ॒तु॒ऽथा। या॒तय॑न्तम्। म॒घा। विप्रे॑भ्यः। दद॑तम्। शृ॒णोमि॑। किम्। ते॒। ब्र॒ह्मा॑णः। गृ॒ह॒ते॒। सखा॑यः। ये। त्वा॒ऽया। नि॒ऽदधुः। काम॑म्। इ॒न्द्र॒ ॥१२॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:32» Mantra:12 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:33» Mantra:6 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वद्विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) परमैश्वर्य्ययुक्त ! विद्या और ऐश्वर्य्य से युक्त पति की कामना करती हुई मैं (हि) निश्चय से (विप्रेभ्यः) बुद्धिमान् जनों के लिये (मघा) धनों को (ददतम्) देते और (ऋतुथा) ऋतु-ऋतु के मध्य में (यातयन्तम्) सन्तान के लिये प्रयत्न करते हुए (त्वाम्) आप को (एवा) ही (शृणोमि) सुनती हैं और (ते) आपके (ये) जो (ब्रह्माणः) चार वेद के जाननेवाले (सखायः) मित्र वे (त्वाया) आप में (किम्) क्या (गृहते) ग्रहण करते और किस (कामम्) मनोरथ को (निदधुः) धारण करते हैं ॥१२॥
Connotation: - स्त्री, ऋतु-ऋतु के मध्य में जाने की कामनावाला है वीर्य्य जिसका ऐसे ऊर्ध्वरेता वीर्य्य को वृथा न छोड़नेवाले, ब्रह्मचर्य्य को धारण किये हुए, उत्तम स्वभाववाले और विद्यायुक्त उत्तम यशवाले जन को पतिपने के लिये स्वीकार करे, उसके साथ यथावत् वर्त्ताव करके, पूर्ण मनोरथ करनेवाली और सौभाग्य से युक्त होवे ॥१२॥ इस सूक्त में इन्द्र और विद्वान् के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह बत्तीसवाँ सूक्त और तेतीसवाँ वर्ग, चौथे अष्टक में प्रथम अध्याय और पञ्चम मण्डल में द्वितीय अनुवाक समाप्त हुआ ॥ इस अध्याय में अग्नि विद्वान् और इन्द्रादिकों के गुणों का वर्णन होने से इस अध्याय में कहे हुए अर्थों की पहिले अध्यायों में कहे हुए अर्थों के साथ सङ्गति है, ऐसा जानना चाहिये ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! विद्यैश्वर्ययुक्त पतिकामाहं हि विप्रेभ्यो मघा ददतमृतुथा यातयन्तं त्वामेवा शृणोमि ते तव ये ब्रह्माणः सखायस्ते त्वाया किं गृहते कं कामं निदधुः ॥१२॥

Word-Meaning: - (एवा) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (हि) (त्वाम्) (ऋतुथा) ऋतोर्ऋतोर्मध्ये (यातयन्तम्) सन्तानाय प्रयतन्तम् (मघा) मघानि धनानि (विप्रेभ्यः) मेधाविभ्यः (ददतम्) (शृणोमि) (किम्) (ते) तव (ब्रह्माणः) चतुर्वेदविदः (गृहते) गृह्णन्ति (सखायः) सुहृदः (ये) (त्वाया) त्वयि। अत्र विभक्तेः सुपां सुलुगिति याजादेशः। (निदधुः) निदधति (कामम्) (इन्द्र) परमैश्वर्य्ययुक्त ॥१२॥
Connotation: - स्त्री ऋतुगामिकाममूर्द्ध्वरेतसं सुशीलं विद्वांसं प्रसिद्धकीर्त्तिं जनं पतित्वाय गृह्णीयात् तेन सह यथावद्वर्त्तित्वाऽलंकामा सौभाग्याढ्या भवेदिति ॥१२॥ अत्रेन्द्रविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति द्वात्रिंशत्तमं सूक्तं त्रयस्त्रिंशो वर्गश्चतुर्थाष्टके प्रथमोऽध्यायः पञ्चमे मण्डले द्वितीयोऽनुवाकश्च समाप्तः ॥ अस्मिन्नध्यायेऽग्निविद्वदिन्द्रादिगुणवर्णनादेतदध्यायोक्तार्थानां पूर्वाऽध्यायोक्तार्थैः सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो ऋतुगामी, ऊर्ध्वरेता, सुशील, विद्वान, प्रसिद्ध कीर्तिमान पुरुष असेल त्याचा स्त्रीने पती म्हणून स्वीकार करावा. त्याच्याबरोबर यथायोग्य वागून पूर्ण मनोरथयुक्त व सौभाग्ययुक्त व्हावे. ॥ १२ ॥