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न्य॑स्मै दे॒वी स्वधि॑तिर्जिहीत॒ इन्द्रा॑य गा॒तुरु॑श॒तीव॑ येमे। सं यदोजो॑ यु॒वते॒ विश्व॑माभि॒रनु॑ स्व॒धाव्ने॑ क्षि॒तयो॑ नमन्त ॥१०॥

English Transliteration

ny asmai devī svadhitir jihīta indrāya gātur uśatīva yeme | saṁ yad ojo yuvate viśvam ābhir anu svadhāvne kṣitayo namanta ||

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Pad Path

नि। अ॒स्मै॒। दे॒वी। स्वऽधि॑तिः। जि॒ही॒ते॒। इन्द्रा॑य। गा॒तुः। उ॒श॒तीऽइ॑व। ये॒मे॒। सम्। यत्। ओजः॑। यु॒वते॑। विश्व॑म्। आ॒भिः॒। अनु॑। स्व॒धाऽव्ने॑। क्षि॒तयः॑। न॒म॒न्त॒ ॥१०॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:32» Mantra:10 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:33» Mantra:4 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वद्विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (युवते) युवावस्था को प्राप्त हुई (स्वधितिः) वज्र के सदृश (देवी) विदुषी तुम (अस्मै) इस (इन्द्राय) ऐश्वर्य्य के लिये यह दो स्त्रियाँ (गातुः) भूमि और (उशतीव) कामना करती हुई स्त्री के समान (यत्) जैसे (ओजः) वीर्य को उत्तम प्रकार ग्रहण करके (सम्, नि, येमे) अच्छे प्रकार नियम में रखती और (आभिः) इन क्रियाओं से (स्वधाव्ने) धन को धारण करनेवाले के लिये (विश्वम्) समस्त व्यवहार को (अनु, जिहीते) अनुकूल चलाती हैं तथा जैसे (क्षितयः) मनुष्य (नमन्त) नम्र होते हैं, वैसे आप होइये ॥१०॥
Connotation: - जैसे बह्मचर्य्य को धारण को हुई ब्रह्मचारिणी कन्या पूर्ण चौबीस वर्ष की अवस्था से युक्त हुई पति की कामना करती हुई गुण, कर्म्म और स्वभाव के सदृश और प्रिय स्वामी का ग्रहण करती है, वैसे ही बिजुली आदि रूप अग्नि सम्पूर्ण संसार को धारण करता है और जैसे गुणवान् जनों को मनुष्य नमते हैं, वैसे ही उत्तम लक्षणों से युक्त स्त्री-पुरुषों को सम्पूर्ण जन नमते हैं ॥१०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥

Anvay:

हे युवते ! स्वधितिरिव देवी त्वमस्मा इन्द्राय गातुरिवोशतीव इमे यदोजः सङ्गृह्य सन्नि येमे। आभिः स्वधाव्ने विश्वमनु जिहीते यथा वा क्षितयो नमन्त तथा त्वं भव ॥१०॥

Word-Meaning: - (नि) (अस्मै) (देवी) (स्वधितिः) वज्र इव (जिहीते) गमयेते (इन्द्राय) ऐश्वर्य्याय (गातुः) भूमिः (उशतीव) कामयमाना स्त्रीव (येमे) (सम्) (यत्) यथा (ओजः) वीर्य्यम् (युवते) प्राप्तयुवावस्थे (विश्वम्) सर्वम् (आभिः) क्रियाभिः (अनु) (स्वधाव्ने) यः स्वं दधाति तस्मै (क्षितयः) मनुष्याः (नमन्त) नमन्ति ॥१०॥
Connotation: - यथा कृतब्रह्मचर्य्या ब्रह्मचारिणी पूर्णचतुर्विंशतिवर्षा पतिं कामयमाना सदृशं हृद्यं स्वामिनं गृह्णाति तथैव विद्युदादिरूपोऽग्निः सर्वं विश्वं धरति यथा गुणवतो जनान् मनुष्या नमन्ति तथैव सुलक्षणौ स्त्रीपुरुषौ सर्वे जना नमन्ति ॥१०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जशी ब्रह्मचर्य धारण करणारी ब्रह्मणचारिणी कन्या पूर्ण चोवीस वर्षांची झाल्यावर पतीची कामना करून गुण, कर्म स्वभावानुसार प्रिय पती निवडते. तसेच विद्युतरूपी अग्नी संपूर्ण जग धारण करतो व जसे गुणवान लोकांसमोर माणसे नम्र होतात तसेच उत्तम लक्षणांनी युक्त स्त्री-पुरुषांसमोर संपूर्ण लोक नम्र होतात. ॥ १० ॥