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आ प्र द्र॑व हरिवो॒ मा वि वे॑नः॒ पिश॑ङ्गराते अ॒भि नः॑ सचस्व। न॒हि त्वदि॑न्द्र॒ वस्यो॑ अ॒न्यदस्त्य॑मे॒नाँश्चि॒ज्जनि॑वतश्चकर्थ ॥२॥

English Transliteration

ā pra drava harivo mā vi venaḥ piśaṅgarāte abhi naḥ sacasva | nahi tvad indra vasyo anyad asty amenām̐ś cij janivataś cakartha ||

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Pad Path

आ। प्र। द्र॒व॒। ह॒रि॒ऽवः॒। मा। वि॒। वे॒नः॒। पिश॑ङ्गऽराते। अ॒भि। नः॒। स॒च॒स्व॒। न॒हि। त्वत्। इ॒न्द्र॒। वस्यः॑। अ॒न्यत्। अस्ति॑। अ॒मे॒नान्। चि॒त्। जनि॑ऽवतः। च॒क॒र्थ॒ ॥२॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:31» Mantra:2 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:29» Mantra:2 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (हरिवः) श्रेष्ठ घोड़ों से युक्त (पिशङ्गराते) सुवर्ण आदि के और (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य्य के देनेवाले राजन् ! आप (मा, वि, वेनः) कामना मत करें अर्थात् कामी न हों और (अमेनान्) नहीं विद्यमान हैं, प्रक्षेप करनेवाली स्त्रियाँ जिनकी उनको (चित्) उन्हीं (जनिवतः) जन्मवाले (चकर्थ) करें और (नः) हम लोगों का (अभि, सचस्व) सब ओर से सम्बन्ध करें और शत्रु के विजय के लिये (प्र, आ, द्रव) अच्छे प्रकार दौड़े जिससे (त्वत्) आपसे (वस्यः) अत्यन्त वसनेवाला (अन्यत्) दूसरा (नहि) नहीं (अस्ति) है, वह आप हम लोगों को सुख से सम्बन्ध कीजिये ॥२॥
Connotation: - जो अतिकालपर्य्यन्त जीवने, बल बढ़ाने, राज्य करने और वृद्धि करने के लिये यत्न करता है, वही कृतकृत्य होता है ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे हरिवः पिशङ्गरात इन्द्र राजँस्त्वं मा वि वेनः कामी मा भवेरमेनांश्चिज्जनिवतश्चकर्थ नोऽभि सचस्व शत्रुविजयाय प्रा द्रव यतस्त्वद्वस्योऽन्यन्नह्यस्ति स त्वमस्मान् सुखेन सम्बध्नीहि ॥२॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (प्र) (द्रव) धाव (हरिवः) प्रशस्ताश्वयुक्त (मा) (वि) (वेनः) कामयेः (पिशङ्गराते) यः पिशङ्गं सुवर्णादिकं राति ददाति तत्सम्बुद्धौ (अभि) (नः) अस्मान् (सचस्व) (नहि) (त्वत्) (इन्द्र) परमैश्वर्य्यप्रद (वस्यः) वसीयान् (अन्यत्) अन्यः (अस्ति) (अमेनान्) अविद्यमाना मेना प्रक्षेपकर्त्र्यः स्त्रियो येषां तान् (चित्) (जनिवतः) जन्मवतः (चकर्थ) कुरु ॥२॥
Connotation: - यो दीर्घं जीवितुं बलमुन्नेतुं राज्यं कर्त्तुं वर्धितुं च प्रयतते स एव कृतकृत्यो जायते ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो दीर्घजीवी, बलवर्धक, राज्यकर्ता असून वृद्धीसाठी यत्न करतो तोच कृतकृत्य होतो. ॥ २ ॥