Go To Mantra

त्वम॑र्य॒मा भ॑वसि॒ यत्क॒नीनां॒ नाम॑ स्वधाव॒न्गुह्यं॑ बिभर्षि। अ॒ञ्जन्ति॑ मि॒त्रं सुधि॑तं॒ न गोभि॒र्यद्दम्प॑ती॒ सम॑नसा कृ॒णोषि॑ ॥२॥

English Transliteration

tvam aryamā bhavasi yat kanīnāṁ nāma svadhāvan guhyam bibharṣi | añjanti mitraṁ sudhitaṁ na gobhir yad dampatī samanasā kṛṇoṣi ||

Mantra Audio
Pad Path

त्वम्। अ॒र्य॒मा। भ॒व॒सि॒। यत्। क॒नीना॑म्। नाम॑। स्व॒धा॒ऽव॒न्। गुह्य॑म्। बि॒भ॒र्षि॒। अ॒ञ्जन्ति॑। मि॒त्रम्। सुऽधि॑तम्। न। गोभिः॑। यत्। दम्प॑ती॒ इति॒ दम्ऽप॑ती। सऽम॑नसा। कृ॒णोषि॑ ॥२॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:3» Mantra:2 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:16» Mantra:2 | Mandal:5» Anuvak:1» Mantra:2


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (स्वधावन्) अच्छे अन्न से युक्त राजन् ! (यत्) जिससे (त्वम्) आप (कनीनाम्) कामना करनेवालों के (अर्यमा) न्यायाधीश (भवसि) होते हो और (गुह्यम्) गुप्त (नाम) नाम को (बिभर्षि) धारण करते हो और (यत्) जो (दम्पती) विवाहित स्त्री पुरुषों को (समनसा) तुल्य मन और दृढ़ प्रीतियुक्त (कृणोषि) करते हो उन आप को सम्पूर्ण विद्वान् जन (गोभिः) वाणी आदि पदार्थों से (सुधितम्) सुन्दर प्रसन्न (मित्रम्) मित्र के (न) सदृश (अञ्जन्ति) प्रकट करते हैं ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। वही राजा श्रेष्ठ है, जो प्रजाओं का यथार्थ न्याय करता है और जैसे मित्र मित्र को प्रसन्न करता है, वैसे ही राजा प्रजाओं को प्रसन्न करे ॥२॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे स्वधावन् राजन् ! यत् त्वं कनीनामर्यमा भवसि गुह्यं नाम बिभर्षि यद्दम्पती समनसा कृणोषि तं त्वां विश्वे देवा गोभिः सुधितं मित्रं नाञ्जन्ति ॥२॥

Word-Meaning: - (त्वम्) (अर्यमा) न्यायाधीशः (भवसि) (यत्) यस्मात् (कनीनाम्) कामयमानानाम् (नाम) (स्वधावन्) प्रशस्तान्नयुक्त (गुह्यम्) रहस्यम् (बिभर्षि) (अञ्जन्ति) व्यक्तीकुर्वन्ति (मित्रम्) सखायम् (सुधितम्) सुष्ठुप्रसन्नम् (न) इव (गोभिः) वागादिभिः (यत्) यः (दम्पती) विवाहितौ स्त्रीपुरुषौ (समनसा) समानमनस्कौ दृढप्रीती (कृणोषि) ॥२॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । स एव राजा श्रेष्ठोऽस्ति यः प्रजानां यथार्थं न्यायं विधत्ते यथा मित्रं मित्रं प्रीणाति तथैव राजा प्रजाः प्रीणीत ॥२॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जो प्रजेला यथार्थ न्याय देतो तोच राजा श्रेष्ठ असतो. जसा मित्र मित्राला प्रसन्न करतो तसेच राजाने प्रजेला प्रसन्न करावे. ॥ २ ॥