सखा॒ सख्ये॑ अपच॒त्तूय॑म॒ग्निर॒स्य क्रत्वा॑ महि॒षा त्री श॒तानि॑। त्री सा॒कमिन्द्रो॒ मनु॑षः॒ सरां॑सि सु॒तं पि॑बद्वृत्र॒हत्या॑य॒ सोम॑म् ॥७॥
sakhā sakhye apacat tūyam agnir asya kratvā mahiṣā trī śatāni | trī sākam indro manuṣaḥ sarāṁsi sutam pibad vṛtrahatyāya somam ||
सखा॑। सख्ये॑। अ॒प॒च॒त्। तूय॑म्। अ॒ग्निः। अ॒स्य। क्रत्वा॑। म॒हि॒षा। त्री। श॒तानि॑। त्री। सा॒कम्। इन्द्रः॑। मनु॑षः। सरां॑सि। सु॒तम्। पि॒ब॒त्। वृ॒त्र॒ऽहत्या॑य। सोम॑म् ॥७॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर सूर्य्यदृष्टान्त से राजविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनः सूर्य्यदृष्टान्तेन राजविषयमाह ॥
यथाग्निरिन्द्रस्तूयमस्य जगतो मध्ये त्री भुवनानि प्रकाशयन् सरांसि पिबद् वृत्रहत्याय सुतं सोममपचत् तथा सखा क्रत्वा सख्ये साकं मनुषो महिषा त्री शतानि रक्षेत् ॥७॥
MATA SAVITA JOSHI
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