इन्द्र॒ ब्रह्म॑ क्रि॒यमा॑णा जुषस्व॒ या ते॑ शविष्ठ॒ नव्या॒ अक॑र्म। वस्त्रे॑व भ॒द्रा सुकृ॑ता वसू॒यू रथं॒ न धीरः॒ स्वपा॑ अतक्षम् ॥१५॥
indra brahma kriyamāṇā juṣasva yā te śaviṣṭha navyā akarma | vastreva bhadrā sukṛtā vasūyū rathaṁ na dhīraḥ svapā atakṣam ||
इन्द्र॑। ब्रह्म॑। क्रि॒यमा॑णा। जु॒ष॒स्व॒। या। ते॒। श॒वि॒ष्ठ॒। नव्याः॑। अक॑र्म। वस्त्रा॑ऽइव। भ॒द्रा। सुऽकृ॑ता। व॒सु॒ऽयुः। रथ॑म्। न। धीरः॑। सु॒ऽअपाः॑। अ॒त॒क्ष॒म् ॥१५॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब विद्वद्विषय में पुरुषार्थरक्षणविषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ विद्वद्विषये पुरुषार्थरक्षणविषयमाह ॥
हे शविष्ठेन्द्र ! यस्य ते नव्याः श्रियो वयमकर्म या क्रियमाणा ब्रह्म त्वं जुषस्व ता भद्रा सुकृता वस्त्रेव स्वपा धीरो वसूयू रथं न भद्रा सुकृता अहमतक्षम् ॥१५॥
MATA SAVITA JOSHI
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