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ए॒ता विश्वा॑ चकृ॒वाँ इ॑न्द्र॒ भूर्यप॑रीतो ज॒नुषा॑ वी॒र्ये॑ण। या चि॒न्नु व॑ज्रिन्कृ॒णवो॑ दधृ॒ष्वान्न ते॑ व॒र्ता तवि॑ष्या अस्ति॒ तस्याः॑ ॥१४॥

English Transliteration

etā viśvā cakṛvām̐ indra bhūry aparīto januṣā vīryeṇa | yā cin nu vajrin kṛṇavo dadhṛṣvān na te vartā taviṣyā asti tasyāḥ ||

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Pad Path

ए॒ता। विश्वा॑। च॒कृ॒ऽवान्। इ॒न्द्र॒। भूरि॑। अप॑रिऽइतः। ज॒नुषा॑। वी॒र्ये॑ण। या। चि॒त्। नु। व॒ज्रि॒न्। कृ॒णवः॑। द॒धृ॒ष्वान्। न। ते॒। व॒र्ता। तवि॑ष्याः। अ॒स्ति॒। तस्याः॑ ॥१४॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:29» Mantra:14 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:25» Mantra:4 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:14


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (वज्रिन्) उत्तम शस्त्र और अस्त्रों से और (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य्य से युक्त राजन् ! (अपरीतः) नहीं वर्ज्जित आप (जनुषा) दूसरे जन्म से और (वीर्य्येण) पराक्रम से (चित्) भी (एता) इन (विश्वा) सब को (चकृवान्) किये हुए हो और (या) जिन (भूरि) बहुत बलों को (कृणवः) करिये। हे राजन् ! (ते) आपकी निश्चित (तस्याः) उस (तविष्याः) बलयुक्त सेना का (दधृष्वान्) धृष्ट अर्थात् हर्षित किया हुआ (नु) शीघ्र (वर्त्ता) स्वीकार करनेवाला कोई भी (न) नहीं (अस्ति) है ॥१४॥
Connotation: - जो राजा आदि जन हैं, वे ब्रह्मचर्य्य से विद्याओं को प्राप्त होकर चवालीस वर्ष की अवस्था से युक्त हुए समावर्त्तन करके अर्थात् गृहस्थाश्रम को विधिपूर्वक ग्रहण कर स्वयंवर विवाह कर और सेना की वृद्धि करके प्रजा की सब प्रकार से रक्षा करें ॥१४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे वज्रिन्निन्द्रापरीतस्त्वं जनुषा वीर्य्येण चिदेता विश्वा चकृवान् या च भूरि कृणवो हे राजँस्ते चित् तस्यास्तविष्या दधृष्वान्नु वर्त्ता वोऽपि नास्ति ॥१४॥

Word-Meaning: - (एता) एतानि (विश्वा) सर्वाणि (चकृवान्) कृतवान् (इन्द्र) परमैश्वर्य्ययुक्त राजन् (भूरि) बहूनि बलानि (अपरीतः) अवर्जितः (जनुषा) द्वितीयेन जन्मना (वीर्य्येण) पराक्रमेण (या) यानि (चित्) अपि (नु) सद्यः (वज्रिन्) प्रशस्तशस्त्रास्त्रयुक्त (कृणवः) कुर्य्याः (दधृष्वान्) धर्षितवान् (न) निषेधे (ते) तव (वर्त्ता) स्वीकर्त्ता (तविष्याः) बलयुक्तायाः सेनायाः (अस्ति) (तस्याः) ॥१४॥
Connotation: - ये राजादयो जनास्ते ब्रह्मचर्य्येण विद्याः प्राप्य चत्वारिंशद्वर्षायुष्कास्सन्तः समावर्त्य स्वयंवरं विवाहं विधाय सेनां वर्धयित्वा प्रजायाः सर्वतोऽभिरक्षणं कुर्य्युः ॥१४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - राजे इत्यादींनी ब्रह्मचर्याने विद्या प्राप्त करून चौरेचाळीस वर्षांनंतर समावर्तन करून स्वयंवर विवाह करावा व सेनेची वाढ करून प्रजेचे सर्व प्रकारे रक्षण करावे. ॥ १४ ॥