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आ जु॑होता दुव॒स्यता॒ग्निं प्र॑य॒त्य॑ध्व॒रे। वृ॒णी॒ध्वं ह॑व्य॒वाह॑नम् ॥६॥

English Transliteration

ā juhotā duvasyatāgnim prayaty adhvare | vṛṇīdhvaṁ havyavāhanam ||

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Pad Path

आ। जु॒हो॒त॒। दुव॒स्यत॑। अ॒ग्निम्। प्र॒ऽय॒ति। अ॒ध्व॒रे। वृ॒णी॒ध्वम्। ह॒व्य॒ऽवाह॑नम् ॥६॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:28» Mantra:6 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:22» Mantra:6 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वद्विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! आप लोग (प्रयति) प्रयत्न से साध्य (अध्वरे) शिल्पादि व्यवहार में (हव्यवाहनम्) उत्तम पदार्थों को प्राप्त करानेवाले (अग्निम्) अग्नि का (दुवस्यत) परिचरण करो अर्थात् युक्ति से उसको कार्य्य में लगाओ और (वृणीध्वम्) स्वीकार करो तथा अन्य जनों के लिये (आ, जुहोता) आदान करो अर्थात ग्रहण करो ॥६॥
Connotation: - विद्यार्थिजन, जैसे विद्वान् जन शिल्पविद्या को स्वीकार करते हैं, वैसे ही स्वयं भी स्वीकार करें ॥६॥ इस सूक्त में अग्नि और विद्वान् के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह अठ्ठाईसवाँ सूक्त और बाईसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! यूयं प्रयत्यध्वरे हव्यवाहनमग्निं दुवस्यत वृणीध्वमन्येभ्य आ जुहोता ॥६॥

Word-Meaning: - (आ) (जुहोता) दत्त। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (दुवस्यत) परिचरत (अग्निम्) पावकम् (प्रयति) प्रयत्नसाध्ये (अध्वरे) शिल्पादिव्यवहारे (वृणीध्वम्) स्वीकुरुत (हव्यवाहनम्) उत्तमपदार्थप्रापकम् ॥६॥
Connotation: - विद्यार्थिनो, यथा विद्वांसः शिल्पविद्यां स्वीकुर्वन्ति तथैव स्वयमपि कुर्युरिति ॥६॥ अत्राग्निविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्यष्टाविंशतितमं सूक्तं द्वाविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे विद्यार्थ्यांनो! जसे विद्वान शिल्पविद्या ग्रहण करतात तसे स्वतःही ग्रहण करा. ॥ ६ ॥