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स॒मि॒ध्यमा॑नो अ॒मृत॑स्य राजसि ह॒विष्कृ॒ण्वन्तं॑ सचसे स्व॒स्तये॑। विश्वं॒ स ध॑त्ते॒ द्रवि॑णं॒ यमिन्व॑स्याति॒थ्यम॑ग्ने॒ नि च॑ धत्त॒ इत्पु॒रः ॥२॥

English Transliteration

samidhyamāno amṛtasya rājasi haviṣ kṛṇvantaṁ sacase svastaye | viśvaṁ sa dhatte draviṇaṁ yam invasy ātithyam agne ni ca dhatta it puraḥ ||

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Pad Path

स॒म्ऽइ॒ध्यमा॑नः। अ॒मृत॑स्य। रा॒ज॒सि॒। ह॒विः। कृ॒ण्वन्त॑म्। स॒च॒से॒। स्व॒स्तये॑। विश्व॑म्। सः। ध॒त्ते॒। द्रवि॑णम्। यम्। इन्व॑सि। आ॒ति॒थ्यम्। अ॒ग्ने॒। नि। च॒। ध॒त्ते॒। इत्। पु॒रः ॥२॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:28» Mantra:2 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:22» Mantra:2 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब विद्वद्विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) विद्वन् ! जिससे (समिध्यमानः) उत्तम प्रकार निरन्तर प्रकाशमान आप (अमृतस्य) कारण वा जल के मध्य में (राजसि) प्रकाशित होते हो और (स्वस्तये) सुख के लिये (हविः) खाने योग्य वस्तु को (कृण्वन्तम्) करते हुए का (सचसे) सम्बन्ध करते हो और आप (विश्वम्) सम्पूर्ण (द्रविणम्) धन वा यश का (धत्ते) धारण करते हो तथा (यम्) जिनको (आतिथ्यम्) अतिथि सत्कार (इन्वसि) व्याप्त होता है और (पुरः) पहिले (च) भी आप (नि, धत्ते) निरन्तर धारण करते हो इससे (सः, इत्) वही आप सत्कार करने योग्य हो ॥२॥
Connotation: - हे विद्वान् जनो ! आप लोग विद्या और विनय से प्रकाशमान अतिथियों की दशा को धारण किये हुए सब स्थानों में भ्रमण करके सम्पूर्ण जनों के लिये सत्य का उपदेश देते हुए यश को निरन्तर पसारिये ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्वद्विषयमाह ॥

Anvay:

हे अग्ने ! यतस्समिध्यमानस्त्वममृतस्य मध्ये राजसि स्वस्तये हविष्कृण्वन्तं सचसे भवान् विश्वं द्रविणं धत्ते यमातिथ्यमिन्वसि पुरश्च नि धत्ते तस्मात् स इत् त्वं पूजनीयोऽसि ॥२॥

Word-Meaning: - (समिध्यमानः) सम्यग्देदीप्यमानः (अमृतस्य) कारणस्योदकस्य मध्ये वा (राजसि) प्रकाशसे (हविः) अत्तव्यं वस्तु (कृण्वन्तम्) कुर्वन्तम् (सचसे) समवैषि (स्वस्तये) सुखाय (विश्वम्) सर्वम् (सः) (धत्ते) धरति (द्रविणम्) धनं यशो वा (यम्) (इन्वसि) व्याप्नोति। व्यत्ययो बहुलमिति लकारव्यत्ययः। (आतिथ्यम्) अतिथिसत्कारम् (अग्ने) विद्वन् (नि) (च) (धत्ते) (इत्) एव (पुरः) पुरस्तात् ॥२॥
Connotation: - हे विद्वांसो ! यूयं विद्याविनयाभ्यां प्रकाशमाना अतिथयस्सन्तः सर्वत्र भ्रमित्वा सर्वान् सत्यमुपदिशन्तः कीर्तिं प्रसारयत ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे विद्वानांनो! तुम्ही विद्या व विनयाने प्रसिद्ध असलेले अतिथी आहात. सर्वत्र भ्रमण करून सर्वांना उपदेश करा व सतत कीर्ती पसरवा. ॥ २ ॥