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इ॒त्था यथा॑ त ऊ॒तये॒ सह॑सावन्दि॒वेदि॑वे। रा॒य ऋ॒ताय॑ सुक्रतो॒ गोभिः॑ ष्याम सध॒मादो॑ वी॒रैः स्या॑म सध॒मादः॑ ॥४॥

English Transliteration

itthā yathā ta ūtaye sahasāvan dive-dive | rāya ṛtāya sukrato gobhiḥ ṣyāma sadhamādo vīraiḥ syāma sadhamādaḥ ||

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Pad Path

इ॒त्था। यथा॑। ते॒। ऊ॒तये॑। सह॑साऽवन्। दि॒वेऽदि॑वे। रा॒ये। ऋ॒ताय॑। सु॒क्र॒तो॒ इति॑ सुऽक्रतो। गोभिः॑। स्या॒मः॒। स॒ध॒ऽमादः॑। वी॒रैः। स्या॒म॒। स॒ध॒ऽमादः॑ ॥४॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:20» Mantra:4 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:12» Mantra:4 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वद्विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (सहसावन्) बल से तुल्य (सुक्रतो) उत्तम बुद्धि से युक्त ! (यथा) जैसे (ते) आपके (ऊतये) रक्षण आदि के लिये (दिवेदिवे) प्रतिदिन (ऋताय) धर्मयुक्त व्यवहार से प्राप्त (राये) धन के लिये हम लोग (गोभिः) वाणियों से (सधमादः) साथ स्थानवाले (स्याम) होवें (वीरैः) शूरवीरों से (सधमादः) साथ स्थानवाले (स्याम) होवें (इत्था) इस कारण से आप हूजिये ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो साहस से पुरुषार्थ करते हुए वीर जनों की सेना को ग्रहण करके ऐश्वर्य्य की प्राप्ति के लिये प्रयत्न करते हैं, वे ही सुखी होते हैं ॥४॥ इस सूक्त में अग्नि के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह बीसवाँ सूक्त और बारहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥

Anvay:

हे सहसावन् सुक्रतो ! यथा त ऊतये दिवेदिव ऋताय राये वयं गोभिः सधमादः स्याम वीरैः सधमादः स्यामेत्था त्वं भव ॥४॥

Word-Meaning: - (इत्था) अस्माद्धेतोः (यथा) (ते) तव (ऊतये) रक्षणाद्याय (सहसावन्) बलेन तुल्य (दिवेदिवे) प्रतिदिनम् (राये) धनाय (ऋताय) धर्म्यव्यवहारेण प्राप्ताय (सुक्रतो) सुष्ठुप्रज्ञ (गोभिः) वाग्भिः (स्याम) (सधमादः) सहस्थानाः (वीरैः) शूरवीरैः (स्याम) (सधमादः) ॥४॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । ये साहसेन पुरुषार्थयन्तः वीरसेनां गृहीत्वैश्वर्य्यप्राप्तये प्रयतन्ते त एव सुखिनो भवन्तीति ॥४॥ अत्राग्निगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति विंशतितमं सूक्तं द्वादशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे साहसपूर्वक पुरुषार्थ करीत वीर लोकांची सेना बाळगून ऐश्वर्याच्या प्राप्तीसाठी प्रयत्न करतात तेच सुखी होतात. ॥ ४ ॥