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हृ॒णी॒यमा॑नो॒ अप॒ हि मदैयेः॒ प्र मे॑ दे॒वानां॑ व्रत॒पा उ॑वाच। इन्द्रो॑ वि॒द्वाँ अनु॒ हि त्वा॑ च॒चक्ष॒ तेना॒हम॑ग्ने॒ अनु॑शिष्ट॒ आगा॑म् ॥८॥

English Transliteration

hṛṇīyamāno apa hi mad aiyeḥ pra me devānāṁ vratapā uvāca | indro vidvām̐ anu hi tvā cacakṣa tenāham agne anuśiṣṭa āgām ||

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Pad Path

हृ॒णी॒यमा॑नः। अप॑। हि। मत्। ऐयेः॑। प्र। मे॒। दे॒वाना॑म्। व्र॒त॒ऽपाः। उ॒वा॒च॒। इन्द्रः॑। वि॒द्वान्। अनु॑। हि। त्वा॒। च॒चक्ष॑। तेन॑। अ॒हम्। अ॒ग्ने॒। अनु॑ऽशिष्टः। आ। अ॒गा॒म् ॥८॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:2» Mantra:8 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:15» Mantra:2 | Mandal:5» Anuvak:1» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) तीन दोषों के नाश करनेवाले ! (हृणीयमानः) क्रोध करते हुए आप (हि) ही (मत्) मेरे समीप से (अप, ऐयेः) जाइये और जो (हि) निश्चय (इन्द्रः) विद्या और ऐश्वर्य्य से युक्त (विद्वान्) विद्वान् (त्वा) आपको (अनु, चचक्ष) अनुकूल कहे और जो (मे) मेरे लिये (देवानाम्) विद्वानों के बीच (व्रतपाः) सत्य की रक्षा करनेवाला हुआ सत्य को (प्र, उवाच) कहे (तेन) इससे (अनुशिष्टः) शिक्षा को प्राप्त (अहम्) मैं सत्यबोध को (आ, अगाम्) प्राप्त होऊँ ॥८॥
Connotation: - जो मनुष्य दुष्ट गुण, कर्म, स्वभाववाले हों वे दूर रखने योग्य हैं और जो धर्मिष्ठ सत्य का उपदेश करें, उनके सङ्ग से शिष्ट अर्थात् श्रेष्ठ होके सुख को प्राप्त होवें ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे अग्ने ! हृणीयमानस्त्वं हि मदपैयेर्यो हीन्द्रो विद्वाँस्त्वानु चचक्ष यो मे देवानां व्रतपाः सन् सत्यं प्रोवाच तेनाऽनुशिष्टोऽहं सत्यं बोधमागाम् ॥८॥

Word-Meaning: - (हृणीयमानः) क्रोधं कुर्वन् (अप) (हि) खलु (मत्) (ऐयेः) गच्छेः (प्र) (मे) मह्यम् (देवानाम्) विदुषाम् (व्रतपाः) सत्यरक्षकः (उवाच) उच्यात् (इन्द्रः) विद्यैश्वर्य्ययुक्तः (विद्वान्) (अनु) (हि) यतः (त्वा) त्वाम् (चचक्ष) कथयेत् (तेन) (अहम्) (अग्ने) त्रिदोषदाहक (अनुशिष्टः) प्राप्तशिक्षः (आ) (अगाम्) प्राप्नुयाम् ॥८॥
Connotation: - ये मनुष्या दुष्टगुणकर्मस्वभावाः स्युस्ते दूरं रक्षणीयाः। ये च धर्मिष्ठाः सत्यमुपदिशेयुस्तत्सङ्गेन शिष्टा भूत्वा सुखमाप्नुत ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - दुष्ट गुणकर्मस्वभावयुक्त माणसांना दूर ठेवावे व धार्मिक, सत्याचा उपदेश करणाऱ्यांच्या संगतीत श्रेष्ठ बनून सुख प्राप्त करावे. ॥ ८ ॥