तु॒वि॒ग्रीवो॑ वृष॒भो वा॑वृधा॒नो॑ऽश॒त्र्व१॒॑र्यः सम॑जाति॒ वेदः॑। इती॒मम॒ग्निम॒मृता॑ अवोचन्ब॒र्हिष्म॑ते॒ मन॑वे॒ शर्म॑ यंसद्ध॒विष्म॑ते॒ मन॑वे॒ शर्म॑ यंसत् ॥१२॥
tuvigrīvo vṛṣabho vāvṛdhāno śatrv aryaḥ sam ajāti vedaḥ | itīmam agnim amṛtā avocan barhiṣmate manave śarma yaṁsad dhaviṣmate manave śarma yaṁsat ||
तु॒वि॒ऽग्रीवः॑। वृ॒ष॒भः। वा॒वृ॒धा॒नः। अ॒श॒त्रु। अ॒र्यः। सम्। अ॒जा॒ति॒। वेदः॑। इति॑। इ॒मम्। अ॒ग्निम्। अ॒मृताः॑। अ॒वो॒च॒न्। ब॒र्हिष्म॑ते। मन॑वे। शर्म॑। यं॒स॒त्। ह॒विष्म॑ते। मन॑वे। शर्म॑। यं॒स॒त् ॥१२॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर विद्वानों के गुणों को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनर्विद्वद्गुणानाह ॥
हे विद्वांसो ! यथा तुविग्रीवो वावृधानो वृषभोऽर्य्योऽशत्रु वेदः समजाति बर्हिष्मते मनवे शर्म यंसद्धविष्मते मनवे शर्म यंसदितीममग्निममृता अवोचन् ॥१२॥
MATA SAVITA JOSHI
N/A