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तु॒वि॒ग्रीवो॑ वृष॒भो वा॑वृधा॒नो॑ऽश॒त्र्व१॒॑र्यः सम॑जाति॒ वेदः॑। इती॒मम॒ग्निम॒मृता॑ अवोचन्ब॒र्हिष्म॑ते॒ मन॑वे॒ शर्म॑ यंसद्ध॒विष्म॑ते॒ मन॑वे॒ शर्म॑ यंसत् ॥१२॥

English Transliteration

tuvigrīvo vṛṣabho vāvṛdhāno śatrv aryaḥ sam ajāti vedaḥ | itīmam agnim amṛtā avocan barhiṣmate manave śarma yaṁsad dhaviṣmate manave śarma yaṁsat ||

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Pad Path

तु॒वि॒ऽग्रीवः॑। वृ॒ष॒भः। वा॒वृ॒धा॒नः। अ॒श॒त्रु। अ॒र्यः। सम्। अ॒जा॒ति॒। वेदः॑। इति॑। इ॒मम्। अ॒ग्निम्। अ॒मृताः॑। अ॒वो॒च॒न्। ब॒र्हिष्म॑ते। मन॑वे। शर्म॑। यं॒स॒त्। ह॒विष्म॑ते। मन॑वे। शर्म॑। यं॒स॒त् ॥१२॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:2» Mantra:12 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:15» Mantra:6 | Mandal:5» Anuvak:1» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वानों के गुणों को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! जैसे (तुविग्रीवः) बहुत बल वा सुन्दरी ग्रीवायुक्त (वावृधानः) अत्यन्त बढ़ता हुआ (वृषभः) अतीव बलवान् (अर्य्यः) स्वामी (अशत्रु) शत्रुओं से रहित (वेदः) धन को (सम्, अजाति) अच्छे प्रकार प्राप्त होवे और (बर्हिष्मते) ज्ञान की वृद्धि से युक्त (मनवे) मनुष्य के लिये (शर्म) सुख वा गृह को (यंसत्) देवे और (हविष्मते) बहुत उत्तम पदार्थों से युक्त (मनवे) विचारशील पुरुष के लिये (शर्म) सुख को (यंसत्) देवे (इति) इस प्रकार से (इमम्) इस (अग्निम्) बिजुली को (अमृताः) आत्मज्ञान जिनकी प्राप्त वे (अवोचन्) कहें ॥१२॥
Connotation: - सब विद्वान् जन ही सब विद्यार्थियों के लिये उत्तम शिक्षा देकर शत्रुता को छुड़ा के सब प्रकार के सुख को प्राप्त होवें ॥१२॥ इस सूक्त में युवावस्था में विवाह और विद्वान् के गुणों का वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्तार्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह द्वितीय सूक्त और पन्द्रहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्गुणानाह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! यथा तुविग्रीवो वावृधानो वृषभोऽर्य्योऽशत्रु वेदः समजाति बर्हिष्मते मनवे शर्म यंसद्धविष्मते मनवे शर्म यंसदितीममग्निममृता अवोचन् ॥१२॥

Word-Meaning: - (तुविग्रीवः) बहुबलयुक्तः सुन्दरी वा ग्रीवा यस्य सः (वृषभः) अतीव बलिष्ठः (वावृधानः) भृशं वर्धमानः। अत्र तुजादीनामिति दीर्घः। (अशत्रु) अविद्यमानाः शत्रवो यस्य तम् (अर्य्यः) स्वामी (सम्) (अजाति) प्राप्नुयात् (वेदः) धनम् (इति) अनेन प्रकारेण (इमम्) (अग्निम्) विद्युतम् (अमृताः) प्राप्तात्मविज्ञानाः (अवोचन्) वदन्तु (बर्हिष्मते) प्रवृद्धविज्ञानाय (मनवे) मनुष्याय (शर्म) सुखं गृहं वा (यंसत्) दद्यात् (हविष्मते) बहूत्तमपदार्थयुक्ताय (मनवे) मननशीलाय (शर्म) सुखम् (यंसत्) प्रदद्यात् ॥१२॥
Connotation: - सर्वे विद्वांसो हि सर्वेभ्यो विद्यार्थिभ्यः सुशिक्षां दत्त्वा शत्रुतां त्याजयित्वा सर्वथा सुखं प्राप्नुवन्तु ॥१२॥ अत्र युवावस्थाविवाहविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति द्वितीयं सूक्तं पञ्चदशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - भावार्थ -सर्व विद्वान लोकांनी सर्व विद्यार्थ्यांना चांगले शिक्षण देऊन वैरत्याग करून सर्व प्रकारचे सुख प्राप्त करावे. ॥ १२ ॥