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प्रि॒यं दु॒ग्धं न काम्य॒मजा॑मि जा॒म्योः सचा॑। घ॒र्मो न वाज॑जठ॒रोऽद॑ब्धः॒ शश्व॑तो॒ दभः॑ ॥४॥

English Transliteration

priyaṁ dugdhaṁ na kāmyam ajāmi jāmyoḥ sacā | gharmo na vājajaṭharo dabdhaḥ śaśvato dabhaḥ ||

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Pad Path

प्रि॒यम्। दुग्धम्। न। काम्य॑म्। अजा॑मि। जा॒म्योः। सचा॑। घ॒र्मः। न। वाज॑ऽजठरः। अद॑ब्धः। शश्व॑तः। दभः॑ ॥४॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:19» Mantra:4 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:11» Mantra:4 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - (वाजजठरः) क्षुधा का वेग उदर में जिससे हो (अदब्धः) जो नहीं हिंसा करने योग्य (शश्वतः) निरन्तर व्याप्त (दभः) और जिससे नाश करता है उस (घर्मः) प्रताप के (न) सदृश वा (प्रियम्) प्रिय (दुग्धम्) दुग्ध के (न) सदृश (सचा) सम्बन्ध से (जाम्योः) खाने योग्य अन्न को देनेवाले प्रकाश और पृथिवी के (काम्यम्) कामना करने योग्य पदार्थ को (अजामि) प्राप्त होता हूँ, इससे मेरे साथ आप लोग भी इसको करो ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो सूर्य्य के प्रकाश के सदृश विद्या से व्याप्त, दुग्ध के सदृश प्रिय वचनवाले और धर्म्म की कामना करते हुए जन हैं, वे पृथ्वी के सदृश सब के रक्षक होते हैं ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

वाजजठरोऽदब्धः शश्वतो दभो घर्मो न प्रियं दुग्धं न सचा जाम्योः काम्यमजामि तेन मया सह यूयमप्येदं कुरुत ॥४॥

Word-Meaning: - (प्रियम्) (दुग्धम्) (न) इव (काम्यम्) कमनीयम् (अजामि) प्राप्नोमि (जाम्योः) अत्तव्यान्नप्रदयोर्द्यावापृथिव्योः (सचा) सम्बन्धेन (घर्मः) प्रतापः (न) इव (वाजजठरः) वाजो क्षुद्वेगो जठरे यस्मात्सः (अदब्धः) अहिंसनीयः (शश्वतः) निरन्तरोऽव्याप्तः (दभः) दभ्नाति हिनस्ति येन सः ॥४॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । ये सूर्य्यप्रकाशवद् व्याप्तविद्या दुग्धवत्प्रियवचसो धर्मं कामयमाना जनास्सन्ति ते भूमिवत्सर्वेषां रक्षका भवन्ति ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे सूर्यप्रकाशाप्रमाणे विद्यावान, दुधाप्रमाणे मधुर वचनी व धर्माची कामना करणारे लोक असतात ते पृथ्वीप्रमाणे रक्षक असतात. ॥ ४ ॥