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अ॒स्य वासा उ॑ अ॒र्चिषा॒ य आयु॑क्त तु॒जा गि॒रा। दि॒वो न यस्य॒ रेत॑सा बृ॒हच्छोच॑न्त्य॒र्चयः॑ ॥३॥

English Transliteration

asya vāsā u arciṣā ya āyukta tujā girā | divo na yasya retasā bṛhac chocanty arcayaḥ ||

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Pad Path

अ॒स्य। वै। अ॒सौ। ऊँ॒ इति॑। अ॒र्चि॒षा॑। यः। अयु॑क्त। तु॒जा। गि॒रा। दि॒वः। न। यस्य॑। रेत॑सा। बृ॒हत्। शोच॑न्ति। अ॒र्चयः॑ ॥३॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:17» Mantra:3 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:9» Mantra:3 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! (यः) जो (असौ) यह (अस्य) इसकी (वै) निश्चय से (अर्चिषा) विद्या की दीप्ति और (गिरा) वाणी से (आयुक्त) युक्त होता (उ) और (यस्य) जिसके (रेतसा) पराक्रम से (दिवः) जैसे मनोहर प्रयोजन के (न) वैसे (अर्चयः) उत्तम सत्कार (बृहत्) बड़े (शोचन्ति) शोभित होते हैं, वह आप दुःखों की (तुजा) हिंसा करो ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जिन विद्वानों के सूर्य्य के प्रकाश के सदृश विद्या यशः और कीर्ति विलास को प्राप्त होते हैं, वे ही बड़े विज्ञान को उत्पन्न करते हैं ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे विद्वन् ! योऽसावस्य वा अर्चिषा गिराऽऽयुक्त। उ यस्य रेतसा दिवो नार्चयो बृहच्छोचन्ति स त्वं दुःखानि तुजा ॥३॥

Word-Meaning: - (अस्य) (वै) निश्चयेन (असौ) (उ) (अर्चिषा) विद्याप्रकाशेन (यः) (आयुक्त) युक्तो भवति (तुजा) प्रेरय। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (गिरा) वाण्या (दिवः) कमनीयार्थस्य (न) इव (यस्य) (रेतसा) (बृहत्) (शोचन्ति) (अर्चयः) सत्कृतयः ॥३॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! येषां विदुषां सूर्यप्रकाशवद्विद्यायशःकीर्त्तयो विलसन्ति त एव बृहद्विज्ञानं प्रसृजन्ति ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! ज्या विद्वानांची विद्या, यश व कीर्ती सूर्यप्रकाशाप्रमाणे प्रकाशित होते तेच महाविज्ञान उत्पन्न करू शकतात. ॥ ३ ॥