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मा॒तेव॒ यद्भर॑से पप्रथा॒नो जनं॑जनं॒ धाय॑से॒ चक्ष॑से च। वयो॑वयो जरसे॒ यद्दधा॑नः॒ परि॒ त्मना॒ विषु॑रूपो जिगासि ॥४॥

English Transliteration

māteva yad bharase paprathāno janaṁ-janaṁ dhāyase cakṣase ca | vayo-vayo jarase yad dadhānaḥ pari tmanā viṣurūpo jigāsi ||

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Pad Path

मा॒ताऽइ॑व। यत्। भर॑से। प॒प्र॒था॒नः। जन॑म्ऽजनम्। धाय॑से। चक्ष॑से। च॒। वयः॑ऽवयः। ज॒र॒से॒। यत्। दधा॑नः। परि॑। त्मना॑। विषु॑ऽरूपः। जि॒गा॒सि॒ ॥४॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:15» Mantra:4 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:7» Mantra:4 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वद्विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! (यत्) जिस कारण (पप्रथानः) प्रसिद्ध विद्यायुक्त आप (मातेव) माता के सदृश (धायसे) धारण करने और (चक्षसे) कहाने को (च) भी (जनञ्जनम्) मनुष्य-मनुष्य का (भरसे) पोषण करते हो और (त्मना) आत्मा से (यत्) जिस कारण (दधानः) धारण करते हुए (वयोवयः) सुन्दर जीवन की (जरसे) स्तुति करते हो और (विषुरूपः) विद्या जिनको प्राप्त ऐसे हुए सम्पूर्ण पदार्थों की (परि) सब प्रकार से (जिगासि) प्रशंसा करते हो, इससे विद्वान् होते हो ॥४॥
Connotation: - जो विद्वान् जन माता के सदृश विद्यार्थियों की रक्षा करते, सब की उन्नति करने की इच्छा करते और ब्रह्मचर्य तथा अवस्था के बढ़ने में कारणरूप कार्य्यों का उपदेश करते हैं, वे संसार के आदर करने योग्य होते हैं ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥

Anvay:

हे विद्वन् ! यद्यतः पप्रथानस्त्वं मातेव धायसे चक्षसे च जनञ्जनं भरसे त्मना यद्दधानो वयोवयो जरसे विषुरूपः सन् सर्वान् पदार्थान् परि जिगासि तस्माद्विद्वान् भवसि ॥४॥

Word-Meaning: - (मातेव) यथा जननी (यत्) यतः (भरसे) (पप्रथानः) प्रख्यातविद्यः (जनञ्जनम्) मनुष्यं मनुष्यम् (धायसे) धातुम् (चक्षसे) ख्यापयितुम् (च) (वयोवयः) कमनीयं जीवनं जीवनम् (जरसे) स्तौषि (यत्) यतः (दधानः) (परि) सर्वतः (त्मना) आत्मना (विषुरूपः) प्राप्तविद्यः (जिगासि) प्रशंससि ॥४॥
Connotation: - ये विद्वांसो मातृवद्विद्यार्थिनो रक्षन्ति सर्वेषामुन्नतिं चिकीर्षन्ति ब्रह्मचर्य्यायुर्वर्धननिमित्तानि कर्म्माण्युपदिशन्ति ते जगत्पूज्या भवन्ति ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

N/A

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Connotation: - जे विद्वान मातेप्रमाणे विद्यार्थ्यांचे रक्षण करतात. सर्वांची उन्नती व्हावी अशी इच्छा बाळगतात. ब्रह्मचर्याचा व दीर्घायुषी बनण्याचा उपदेश करतात. ते जगात आदर करण्यायोग्य असतात. ॥ ४ ॥