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अ॒ग्निर्जा॒तो अ॑रोचत॒ घ्नन्दस्यू॒ञ्ज्योति॑षा॒ तमः॑। अवि॑न्द॒द्गा अ॒पः स्वः॑ ॥४॥

English Transliteration

agnir jāto arocata ghnan dasyūñ jyotiṣā tamaḥ | avindad gā apaḥ svaḥ ||

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Pad Path

अ॒ग्निः। जा॒तः। अ॒रो॒च॒त॒। घ्नन्। दस्यू॑न्। ज्योति॑षा। तमः॑। अवि॑न्दत्। गाः। अ॒पः। स्व१॒॑रिति॒ स्वः॑ ॥४॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:14» Mantra:4 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:6» Mantra:4 | Mandal:5» Anuvak:1» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर अग्निविषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! राजा जैसे (जातः) प्रकट हुआ (अग्निः) अग्नि (ज्योतिषा) प्रकाश से (तमः) अन्धकाररूप रात्रि का (घ्नन्) नाश करता हुआ (अरोचत) प्रकाशित होता और (गाः) किरणों (अपः) अन्तरिक्ष और (स्वः) सूर्य्य को (अविन्दत्) प्राप्त होता, वैसे प्राप्त हुए विद्या विनय जिसको वह (दस्यून्) दुष्ट चोरों का नाश करते हुए और न्याय से अन्याय का निवारण करके विजय और यश को प्राप्त हो ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे अग्नि अन्धकार का निवारण करके प्रकाशित होता है, वैसे राजा दुष्ट चोरों का निवारण करके विशेष शोभित होवें ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरग्निविषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! राजा यथा जातोऽग्निर्ज्योतिषां तमो घ्नन्नरोचत गा अपः स्वश्चाऽविन्दत् तथा जातविद्याविनयो दस्यून् घ्नन् न्यायेनाऽन्यायं निवार्य्य विजयं कीर्तिं च लभेत ॥४॥

Word-Meaning: - (अग्निः) पावकः (जातः) प्रकटः सन् (अरोचत) प्रकाशते (घ्नन्) (दस्यून्) दुष्टाँश्चोरान् (ज्योतिषा) प्रकाशेन (तमः) अन्धकाररूपां रात्रिम् (अविन्दत्) लभते (गाः) किरणान् (अपः) अन्तरिक्षम् (स्वः) आदित्यम् ॥४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यथाग्निरन्धकारं निवार्य्य प्रकाशते तथा राजा दुष्टान् चोरान् निवार्य्य विराजेत ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा अग्नी अंधकार नष्ट करून प्रकाश करतो. तसे राजाने दुष्ट चोरांचे निवारण करावे व विशेष शोभून दिसावे. ॥ ४ ॥