Go To Mantra

यस्ते॑ अग्ने॒ नम॑सा य॒ज्ञमीट्ट॑ ऋ॒तं स पा॑त्यरु॒षस्य॒ वृष्णः॑। तस्य॒ क्षयः॑ पृ॒थुरा सा॒धुरे॑तु प्र॒सर्स्रा॑णस्य॒ नहु॑षस्य॒ शेषः॑ ॥६॥

English Transliteration

yas te agne namasā yajñam īṭṭa ṛtaṁ sa pāty aruṣasya vṛṣṇaḥ | tasya kṣayaḥ pṛthur ā sādhur etu prasarsrāṇasya nahuṣasya śeṣaḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

यः। ते॒। अ॒ग्ने॒। नम॑सा। य॒ज्ञम्। ईट्टे॑। ऋ॒तम्। सः। पा॒ति॒। अ॒रु॒षस्य॑। वृष्णः॑। तस्य॑। क्षयः॑। पृ॒थुः। आ। सा॒धुः। ए॒तु॒। प्र॒ऽसस्रर्णा॑स्य। नहु॑षस्य। शेषः॑ ॥६॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:12» Mantra:6 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:4» Mantra:6 | Mandal:5» Anuvak:1» Mantra:6


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) राजन् ! (अरुषस्य) नहीं हिंसा करने और (वृष्णः) सुख के वर्षानेवाले (तस्य) उन (ते) आपका (यः) जो (पृथुः) विस्तारयुक्त (प्रसर्स्राणस्य) अत्यन्त धर्म को प्राप्त हुए (नहुषस्य) मनुष्य के (शेषः) बाकी रहे के सदृश (साधुः) श्रेष्ठ (क्षयः) निवास (नमसा) अन्न आदि से (यज्ञम्) यज्ञ को (ईट्टे) ऐश्वर्ययुक्त करता है (सः) वह (ऋतम्) सत्य-न्याय की (पाति) रक्षा करता है, वह हम लोगों को (आ, एतु) सब प्रकार प्राप्त हो ॥६॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो विद्वानों की सेवा और धर्म की रक्षा करता है, उसके रक्षण को आप लोग करके शेष सुख को प्राप्त हूजिये ॥६॥ इस सूक्त में अग्नि और विद्वान् के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह बारहवाँ सूक्त और चौथा वर्ग समाप्त हुआ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे अग्नेऽरुषस्य वृष्णस्तस्य ते यः पृथुः प्रसर्स्राणस्य नहुषस्य शेष इव साधुः क्षयो नमसा यज्ञमीट्टे स ऋतं पाति सोऽस्मानैतु ॥६॥

Word-Meaning: - (यः) (ते) तव (अग्ने) राजन् (नमसा) अन्नादिना (यज्ञम्) (ईट्टे) ऐश्वर्य्ययुक्तं करोति (ऋतम्) सत्यं न्यायम् (सः) (पाति) रक्षति (अरुषस्य) अहिंसकस्य (वृष्णः) सुखवर्षकस्य (तस्य) (क्षयः) निवासः (पृथुः) विस्तीर्णः (आ) (साधुः) श्रेष्ठः (एतु) प्राप्नोतु (प्रसर्स्राणस्य) भृशं धर्मं प्रापमाणस्य (नहुषस्य) मनुष्यस्य। नहुष इति मनुष्यनामसु पठितम्। (निघं०२.३) (शेषः) यः शिष्यते सः ॥६॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यो विद्वत्सेवां धर्म्मरक्षणं करोति तद्रक्षणं यूयं कृत्वा शिष्टं सुखं प्राप्नुतेति ॥६॥ अत्राग्निविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति द्वादशं सूक्तं चतुर्थो वर्गश्च समाप्तः ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे माणसांनो ! जो विद्वानाची सेवा व धर्माचे रक्षण करतो त्याचे तुम्ही रक्षण करून सुख प्राप्त करा. ॥ ६ ॥